छब्बीस जनवरी
दोहा गीतिका
झण्डा अपने देश का , है गणतंत्र की शान
शुरू हुआ था आज ही ,अपना ये संविधान
निकाल गौरों को देश से, हुए हम स्वाधीन
खुली हवा में सांस ली , नहीं रहे आधीन
इसी लिये हम वतन का , रखे बनाये मान
झण्डा अपने देश का , है गणतंत्र की शान
छब्बीस जनवरी दिवस , छाया मन उल्लास
भास हमें हो रहा है ,आज आनन्द हास
मिली आजादी हमें जो, उसका हो आभास
इसी हेतु ले शपथ हम,भारतवासी खास
मान देश पर मुझे है , जो है मेरी जान
झण्डा अपने देश का , है गणतंत्र की शान
बरकरार हम रखे मिल,अक्षुण्णता को आज
गौरव मय इतिहास है,जिस पर हमको नाज
राणा सांगा भूमि यह ,जिस पर हमको मान
वीर शिवा मनु छबीली , करते गौरव गान
मिट जाऊँ मैं आज फिर , ऐसा है अरमान
झण्डा अपने देश का , है गणतंत्र की शान
सावरकर की बोल जय , जिसने दे दी जान
भगत शेखर को मात , रही सुनाती कान
अब तक लूटा बहुत ने , अब नहिं सके लूट
सौगंध खा कर कहे हम ,कर दे उसको शूट
मैं भी इस पर मिटूँ अब , यही वतन फरमान
झण्डा अपने देश का , है गणतंत्र की शान
सींचा हमने लहू से , करके खुद कुर्बान
इसी लिये हम बढ़ाये , मान सदा दे जान
विकास पथ पर वतन हो , करे सदा प्रयास
युवा और सब जनों से , बनी रहे यह आस
अपने से है वतन यह, अपने से इसका मान
झण्डा अपने देश का , है गणतंत्र की शान
सेना के अंग तीन जो, देते रक्षा विश्वास
उठा सके शत्रु आँख नहिं,रहे वतन को आस
आने वाले लोग भी , गाये इसके गान
झण्डा अपने देश का , है गणतंत्र की शान
अठारह सौ सत्तावन , शुरू क्रांति की आग
रहे वर्चस्व सभी का , लहू गया था जाग
आहुति असंख्य जनों की ,आजाद हिन्द हेतु
इसी लिये था जरूरी , बीच सभी के सेतु
चप्पा चप्पा धरा का, गाये शौर्य गान
झण्डा अपने देश का , है गणतंत्र की शान