छप्पय छंद श्रवण कथा
छप्पय छंद
रोला + उल्लाला
1
याद आ रहा समय गुरू जी मुझे पुराना ।
सुनके प्रजा पुकार,सभी के प्राण बचाना।
मचा हुआ कुहराम,दुखी सारे नर नारी।
था भारी आतंक देख कर हाहाकारी।
गुरु जनहित में मुझको लगा,
पागल गज बध मानके।
निशि बैठा सरजू तीर में,
बाण धनुष पर तानके ।
2
गुड़ गुड़ की आवाज़, कान में पड़ी सुनाई ।
गज पानी पी रहा,समझ में मेरे आई ।
शब्द भेद का तीर,लक्ष्य पर ज्यों ही मारा ।
हाय पिता हा मात, वहाँ से गया पुकारा।
वह तुंबा भरता श्रवण था,
बाण जाय छाती लगा।
तब शब्द भेद की सब कला,
गई मुझे देकर दगा ।
3
मात पिता को जाय, अभी पिलवा दो पानी।
मैं जाता सुरधाम, यहाँ है खतम कहानी।
दोनों दृष्टि विहीन , देख कुछ भी नहिं पाते।
आया वापस उन्हें, सभी शुभ तीर्थ कराते ।
तब ले जल पहुँचा पास में, कहा आप जल पीजिये।
सुनि कर अचरज वे यों कहें,
परिचय अपना दीजिये।
4
पल पल मुश्किल हुआ,समय का मुझको कटना ।
परिचय दे सब कही,घटी जो जैसी घटना।
बिना पिये जल हाय, हाय कर मुखड़ा खोले ।
मुझको देते शाप, क्रोध में बाणी बोले।
नृप फल सुत के बध का मिले ,
अवश तुम्हें इस लोक में ।
हम आज जिस तरह मर रहे,
तुम मरो इस तरह शोक में ।
5
बार बार गुरुदेव, याद घटना आती है।
बिना पुत्र के आयु,पूर्ण बीती जाती है।
दिया उन्होंने शाप,वही वरदान बनेगा।
होय तुम्हें संतान, अवध आनंद
मनेगा।
अब करो यज्ञ नृप शीघ्र ही,
पुत्र हेतु निज इष्ट से ।
फिर सफल मनोरथ होय सब,
बोलो गुरू वशिष्ठ से ।।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
9/11/22