छन्द- सम वर्णिक छन्द ” कीर्ति “
( प्रस्तुति -3 )
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सब देख रहा अपना है ।
पर झूठ भरा सपना है ।
अपना- अपना कह रोते ।
निज स्वार्थ भरे सब होते ।।
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पहले कुछ ज्ञात न होता ।
धन- यौवन है जब खोता ।
निज पुत्र न पास दिखाता।
दिखने भर केवल नाता ।।
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तन भी अपना दुख देता ।
बहु व्याधि बुला तब लेता ।
भज ‘ साधक ‘ राम सहारा ।
अपना बस एक तुम्हारा ।।