छत्रपति शिवाजी महाराज की समुद्री लड़ाई
पूना के पास खंडेरी टापू पर शिवाजी ने अधिकार कर विशाल दुर्ग का निर्माण कराया था। साथ ही समुद्र तट को जल सेना का केन्द्र बनाया गया। खण्डेरी को केन्द्र बनाकर ही शिवाजी अंग्रेजो, जंजीरा के शासक सिद्दियों तथा ठाणे पर अधिकार जमाने वाले पुर्तगालियों से टक्कर ले सकते थे। जब अंग्रेजों को पता चला कि शिवाजी खण्डेरी द्वीप पर अधिकार कर उसे अपना केन्द्र बना रहे हैं, तो वे घबरा गये। २ सितम्बर १६७० को मुम्बई के अंग्रेज डिप्टी कमिश्नर ने शिवाजी के सेनानायक भाई नायक भण्डारी को धमकी भरा पत्र लिखा कि “राजा शिवाजी के खण्डेरी पर अधिकार के स्वप्न को कुचल दिया जायेगा।” बदले में शिवाजी ने उत्तर दिया कि “कौन किसे कुचलता है, वह समय पर पता चल जायेगा।”
अंग्रेजों ने चार जहाज खण्डेरी टापू के निकट तैनात कर उसकी घेराबन्दी कर दी। खण्डेरी का सम्बन्ध अन्य जहाजों से कट गया तथा रसद आदि आना बंद हो गया। दुर्ग में तैनात मराठा सैनिकों में चिन्ता की लहर दौड़ गयी कि अब क्या होगा? रसद खत्म होने पर भूखा मरना पड़ सकता था। वे शिवाजी से सलाह करना चाहते थे, किन्तु संदेश भेजने का भी कोई साधन नहीं था। १९ सितम्बर १६७९ को मराठों की तोपें आग उगलने लगीं। इस बार निर्णायक व आखिरी युद्ध था। शिवाजी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। जंजीरा का मुगल शासक कासिम सिद्दी भी इस बार अंग्रेजों की ओर से लड़ाई के मैदान में था। मराठा सैनिकों ने अपनी गुरिल्ला पद्धति से दुश्मन पर हमला किया। एक-एक मराठा तीस-तीस अंग्रेजों से जूझते हुए, उन्हें तलवारों के वार से जमीन सूँघा रहा था। अंग्रेजों व मराठों के जहाज समुद्र में आमने-सामने आ गये। अंग्रेजों के विशालकाय जहाजों के आगे मराठों के छोटे-छोटे जहाज डगमगाने लगे। अन्त में मराठों ने गुरिल्ला युद्ध का सहारा लिया। मराठा नावें लेफ्टिनेंट थार्पे के जहाज को चारों ओर से घेर उसके जहाज तक पहुँच गयी और थार्पे पर मराठों द्वारा तलवारों से हमला किया जाने लगा जिससे थार्पे को असहाय होकर जान बचाने के लिये समुद्र में कूदना पड़ा। एक मराठा नाविक ने उसका पीछा किया और उसे पानी में डुबोकर मार डाला। हेनरी वेल्स तथा जॉन ब्रेडरी नामक गोरे अफसर भी पानी मे डुबोकर मार डाले गये। अंग्रेजों के चारों जहाजों पर मराठों ने कब्जा कर लिया।
अंग्रेजों ने छोटी-सी मराठा सेना के हाथों हुई इस हार का बदला लेने के लिये योजना बनाई और आठ बड़े जहाज, सात छोटे जहाज व समुद्री नौकाओं पर दो-हजार सिपाहियों का काफिला खण्डेरी रवाना किया। जहाजों पर भयानक मार करने वाली तोपें भी थीं। कैप्टन रिचर्ड केगुरिन के नेतृत्व में सेना ने खण्डेरी पहुँचकर दुर्ग पर आक्रमण कर दिया। इस बार अंग्रेज सेना की बड़ी तैयारी के कारण मराठा सैनिक घबरा गये। उन्होंने हथियार डाल देने का निर्णय कर लिया, किन्तु तभी शिवाजी महाराज का आदेश पहुँचा कि एक भी मराठा सैनिक जिन्दा रहने तक हथियार न डाले। आखिरी सांस तक दुश्मन से लड़ना अपना धर्म हैं। ‘भवानी’ सफलता प्रदान करेंगी। अपने नेता के आदेश को पाकर मराठों में जोश भर गया। रात के समय अंग्रेज शराब के नशे में डूबे हुए थे तभी मराठा सैनिकों ने ‘हर-हर महादेव’ और ‘जय भवानी’ के नारों के साथ उन पर आक्रमण कर दिया। मराठों की तोपों ने गोले बरसाने शुरू कर दिये। अचानक किये गए आक्रमण ने अंग्रेजों को बुरी तरह पराजित कर दिया। उनकी तोपें धरी की धरी रह गयीं। उन्हें पराजय स्वीकार करनी पड़ी।
१७ नवम्बर १६७९ को अंग्रेजो ने फिर से भारी तैयारी के साथ शिवाजी की सेना पर हमला कर दिया। मराठों की नौकाओं ने जहाजों को जलाना शुरू कर दिया। यह आखिरी युद्ध भी शिवाजी के वीर व निपुण सैनिकों के पक्ष में ही रहा। अंग्रेजों को लिखित रूप से यह स्वीकारना पड़ा कि खण्डेरी पर शिवाजी का अधिकार है, तब जाकर घायल अंग्रेज वहाँ से लौटाये जा सके।
छत्रपति शिवाजी की तरह ही बाजीराव पेशवा ने भी पुर्तगालियों से समुद्री युद्ध किया था। पुर्तगालियों ने भी अंग्रेजो की तरह भारत की ओर पंजे बढ़ा कर कुछ क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था। भारत के पश्चिमी तट गोवा आदि तक उन्होंने अपने पैर जमा लिये तथा वहाँ के गरीब भारतीयों को भयभीत कर उनका धर्म परिवर्तन करने के काम में जुट गये। विदेशी पादरियों ने मन्दिर गिराना शुरू किया तो पेशवा बाजीराव यह सहन न कर सके। उन्होंने चम्माजी अप्पा के नेतृत्व में मराठा सेना पुर्तगालियों से टक्कर लेने भेज दी। पुर्तगालियों ने मराठा सेना के आक्रमण को देखा तो वे घबरा गये। एक दुर्ग में छिप कर उन्होंने अपनी जान बचाई। दुर्ग के चारों ओर भयानक दलदल था। भारी कोशिश करने पर भी मराठा सैनिक दुर्ग तक नही पहुँच सके। जैसे ही मराठा घुड़सवार आगे बढ़ने का प्रयास करते घोड़े सहित दलदल में फँस जाते। महीनों तक दुर्ग की घेराबन्दी किये सेना पड़ी रही, पर आगे बढ़ने में सफल नही हो सकी।
‘मैं आज ही दुर्ग में प्रवेश करके रहूँगा। यदि वैसे नहीं घुस पाया तो तोप के मुँह में घुसकर तोपची को तोप दागने का आदेश दूँगा। आखिर मेरे शरीर का कोई भाग तो दुर्ग में गिरेगा ही’, मराठा सेनापति चम्माजी अप्पा ने सैनिकों से कहा। मराठा सैनिक अपने नेता के दृढ़ निश्चय को सुनकर सकपका गये। ‘हर-हर महादेव’ के उद्घोष के साथ मराठा सैनिक दुर्ग की ओर बढ़ चले। दुर्ग के दलदल वाले रास्ते में अनेक सैनिक घोड़े सहित फंस गये। पीछे के सैनिकों ने घोड़ो को एड़ लगाई कि दलदल में फंसे घोड़े व सैनिको पर से होते हुए अन्य मराठा सैनिक द्वार की ओर आगे बढ़ जाये। प्राणों की चिंता छोड़कर वे आगे बढ़ने लगे। अनेको ने दलदल में धंसकर अपने साथियों के लिये रास्ता बना दिया। अंत में हजारों मराठा सैनिक दलदल में फंसे सैनिकों पर से गुजरते हुए दुर्ग तक पहुँच गए। दुर्ग में घुसकर मराठा सैनिकों ने पुर्तगालियों पर भयंकर आक्रमण किया। इस घमासान युद्ध में सैकड़ो पुर्तगालियों को मौत के घाट उतार दिया गया। पुर्तगालियों ने अंत मे मराठों की अधीनता स्वीकार कर ली।
पुर्तगाली अधिकारी डिसोजा पेरिये ने आगे बढ़कर अपनी तलवार चम्माजी अप्पा के चरणों मे रख दी। बसई की चोटी से पुर्तगाली झण्डा उतार कर उस पर भगवा ध्वज फहरा दिया गया। सेनापति चम्माजी अप्पा ने दलदल में प्राण देने वाले मराठा सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि― हमारी विजय का सच्चा सेहरा उन वीरों के सर पर बँधा है, जिन्होंने स्वयं प्राण देकर दुर्ग तक पहुँचने का रास्ता बनाया।