Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
27 Jul 2021 · 4 min read

छत्तर की बेटी

छत्तर की बेटी

गाँव का एक युवा किसान, अपनी पत्नी एक बूढ़ी माँ ,बेटा सुन्नर के साथ सुख चैन से जीवन यापन कर रहा होता है।लड़की की चाहत में फुलेनवा(किसान की पत्नी) एक शिशु को जन्म देती है ।पर अफ़सोस लडक़ी नहीं होती और न ही लड़का।यह नवजात शिशु अविकसित लिंग का होता है अर्थात किन्नर।अचानक से सन्नाटा छा जाता है। तभी एक आवाज़ आती है क्या हुआ-क्या हुआ , बूढ़ी माँ पूछती हैं।छत्तर लतपटाते स्वर में ,लड़की हुई है।फुलेनवा रोने लगती है।छत्तर को साँप सूंघ जाता है। फुलेनवा ईश्वर का विलाप करते हुए कहती है – हम समाज में मुँह दिखाने लायक़ नहीं रहें।क्या होगा? जब लोगों को पता चलेगा कि हमारी ये संतान लड़की न होकर एक किन्नर है।लोग हम पर हँसेंगे,हमारी खिल्लियां उड़ायेंगे।इसके बड़े होने पर समाज इसका जीना दूभर कर देगी।इसे भी अपने जीवन पर रोना ही आयेगा और दुनियाभर की ज़िल्लत सहनी पड़ेगी।सुनों! मेरे गाँव के रास्ते में नदी को नाव से पार करना पड़ता है वहीं इसे बहा दिया जाए और कह दिया जायेगा अचानक से नाव से कुछ टकराया और लड़की हाथ से छूट गयी।ऐसा कहते हुए फुलेनवा अचेत हो जाती है। छत्तर कुछ समय हक्का-बक्का रहता है ,फिर सोचता है ,पता नहीं कौन-सा पुण्य किये हैं कि चलता-फिरता,हँसता-खेलता मानव तन मिला । इससे किसी का जीवन छीनकर ,इसे कलंकित नहीं करूँगा।मैंने किसी का बुरा करना तो दूर,ऐसा कभी सोचा भी नही।फिर भी मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ।जरूर भगवान ने कुछ अच्छा ही सोचा होगा ।इस समाज का क्या ? जो आज किसी के पांव की जूती है कल वही उसके सिर का ताज बन जाता है।और यही नहीं ,नीच से नीच लोगों के पैरों पर अच्छे से अच्छे लोग तुच्छ स्वार्थ में नीच से नीच कुकृत्य करते हुए, नाक रगड़ते रहते हैं।इसकी तुलना में तो हमारे साथ जो हुआ है कुछ भी नहीं , जिससे समाज में सिर नीचा हो जाए।छत्तर कुछ न करने के साथ आस्वस्त होकर, फुलेनवा को समझाता है- कुछ वर्ष इसे लड़की मानकर पालन- पोषण करेंगे फिर किसी किन्नर मठ में पहुंचा देंगे।इसपर फुलेनवा पूछती है कि उस समय लोग पूछेंगे तो।छत्तर कहता है- कह देंगे मेले या कहीं शहर में गुम हो गयी।इस आशा के साथ दोनों बहुत लाड़ प्यार से उसका नाम सुन्नरी रखते हैं।सुन्नरी बहुत ही हँसमुख व रचनात्मक रहती है।जिसके कारण परिवार के सभी उसका बहुत मान-जान करते हैं।अब सुन्नरी तीन साल की हो गयी होती है।गाँव में हर वर्ष की भाँति दशहरा का मेला लगता है।छत्तर व फुलेनवा कलेजे पर पत्थर रखकर, मेले की आड़ में सुन्नरी को नहला-धुला, नया कपड़ा पहना ओढ़ा के मठ के लिए निकलते हैं।घर से कुछ ही दूरी पर गए होते हैं कि छत्तर को ठोकर(पत्थर)लगती है और वह गिर जाता है।सुन्नरी माँ से हाथ छुड़ा , पिता को उठाने लगती है।छत्तर उठता है तो उसके घुटने से खून निकल रहा होता है।सुन्नरी तुरंत अपने फ्रॉक से कपड़े का बेल्ट निकालती है और घुटने पर बाँधने लगती है।इसे देख फुलेनवा और छत्तर की आँखें भर आती हैं।सुन्नरी उनके दिलों में घर कर जाती है ।इसपर दोनों निश्चय करते हैं कि इसे अपने से दूर नहीं करेंगे।अपने संतुष्टि के लिए स्वयं को तर्क देते हैं , जिस समाज में बहू-बेटियाँ घर के चौखट से बाहर नहीं निकलती थीं आज उसी समाज में बहू-बेटियां देश की सरहद पर दुश्मनों के छक्के छुड़ा देती हैं।देश के बाहर खेलों में विरोधियों की नानी याद दिला देती हैं।आधुनिकता के इस युग व आज के विकासशील समाज में ऐसे बच्चे को पालना गर्व का विषय होगा न की शर्म का। इस भाग दौड़ भरे परिवेश में जहाँ लोग अपने व बाल-बच्चों के भविष्य के लिए भ्रष्टाचार पर भ्रष्टाचार व निम्न से निम्न कुकृत्य करते हैं ,वहाँ ये अपना व अपने परिवार का गौरव बढ़ाने का कार्य करेगी।लोग हमारी मिसाल देते नहीं थकेंगे।सदा हमारे साथ रहेगी।वृद्धावस्था में वृद्धाश्रम का भय भी नहीं रहेगा।और रह गई शर्म की बात तो फ़िल्म जगत की अभिनेत्रियां बोल्ड से बोल्ड सीन करती हैं और समाज में उनका व उनके परिवार का सम्मान ,सभी के लिए शिरोधार्य होता है।उनकी उस ढ़ंग के कार्यों की तुलना में , हम जो करने जा रहे हैं अंश मात्र भी नहीं है।हम इसे ,इसके रुचि के क्षेत्र में प्रोत्साहित करेंगे।इसी संकल्प के साथ तीनों मेले में जाते हैं और ख़ूब खाते व घूमते हैं।सुन्नरी दादी व भैया के लिए जलेबी लेती है।घर पहुंचे ही दादी सुन्नरी के हाथ जलेबी देख ,कह उठती है जुग-जुग जियो,सदा खुश रहो ,एक दिन तुम अपना व परिवार का नाम रोशन करोगी ,कहते हुए गोद में ले लेती हैं। छत्तर के दोनों बच्चे स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद, सुन्नर BOYS कॉलेज में व सुन्नरी किन्नर कॉलेज में दाखिल लेते हैं।कॉलेज के बाद जहाँ सुन्नर प्रशासनिक सेवा में हो जाता है तो वहीं सुन्नरी MBBS डॉक्टर बनती है।कुछ वर्षों में ही सुन्नर भ्रष्टाचार के आरोप में सस्पेंड कर दिया जाता तो वहीं सुन्नरी ट्रस्ट के अस्पताल से गरीब, असहाय व गंभीर बीमारी से पीड़ित लोगों का इलाज कर प्रेम-स्नेह ,आशीर्वाद तथा वाहवाही बटोरती है।लोग बीमारी से छुटकारा पाने के बात छत्तर व उसके पूरे परिवार को अनेकानेक दुआएं, आशीर्वाद देते हुए उसके निर्णय की प्रशंसा करते नहीं थकते।जो लोग छत्तर का हँसी उड़ाया करते थे ।आज वो लोग किसी को कुछ भी होने पर सबसे आगे कहते हुए मिलते हैं कि छत्तर की बेटी के अस्पताल में ले चलो ,वो ठीक कर देगी।अस्पताल,’छत्तर की बेटी का अस्पताल’ के नाम से प्रसिद्ध हो गया।सुन्नरी अपनी जीवन पर विचार करते हुए कहती है कि आज मैं चाहूं तो GENDER TRANSITION, हार्मोन थिरैपी,सर्जरी के द्वारा जेंडर बदल सकती हूँ पर ओ ख़ुशी, आत्मसंतुष्टि नहीं रह जायेगी लोगों की सेवा करते हुए मिलती है।दुनिया में ऐसे बहुत लोग हैं जो पूर्णतया स्त्री या पुरूष होने पर भी एकेले ही जीवन जीते है।

०००

लेखक(कहानी)- सर्वेश यादव (सारंग)
इलाहाबाद विश्वविद्यालय,
प्रयागराज, उत्तर-प्रदेश

6 Likes · 10 Comments · 641 Views

You may also like these posts

इरशा
इरशा
ओंकार मिश्र
" बिछुड़ना "
Dr. Kishan tandon kranti
अच्छे दोस्त भी अब आंखों में खटकने लगे हैं,
अच्छे दोस्त भी अब आंखों में खटकने लगे हैं,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
पल्लवित प्रेम
पल्लवित प्रेम
Er.Navaneet R Shandily
असल सूँ साबको
असल सूँ साबको
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
हाइकु- शरद पूर्णिमा
हाइकु- शरद पूर्णिमा
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
🤣 लिख लीजिए 🤣
🤣 लिख लीजिए 🤣
DR ARUN KUMAR SHASTRI
बस एक बार और………
बस एक बार और………
कवि दीपक बवेजा
अनुत्तरित
अनुत्तरित
Meera Thakur
स्याही की इक बूँद
स्याही की इक बूँद
Atul "Krishn"
*गुरु (बाल कविता)*
*गुरु (बाल कविता)*
Ravi Prakash
* फागुन की मस्ती *
* फागुन की मस्ती *
surenderpal vaidya
रपटा घाट मंडला
रपटा घाट मंडला
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
"भाग्य से जीतनी ज्यादा उम्मीद करोगे,
Ranjeet kumar patre
*** आकांक्षा : एक पल्लवित मन...! ***
*** आकांक्षा : एक पल्लवित मन...! ***
VEDANTA PATEL
तुम आशिक़ हो,, जाओ जाकर अपना इश्क़ संभालो ..
तुम आशिक़ हो,, जाओ जाकर अपना इश्क़ संभालो ..
पूर्वार्थ
पिता का प्यार
पिता का प्यार
Befikr Lafz
गीत- बहुत भोली बड़ी कमसिन...
गीत- बहुत भोली बड़ी कमसिन...
आर.एस. 'प्रीतम'
बचपन के वो दिन कितने सुहाने लगते है
बचपन के वो दिन कितने सुहाने लगते है
Suman (Aditi Angel 🧚🏻)
रेगिस्तान के महल तक
रेगिस्तान के महल तक
Minal Aggarwal
..
..
*प्रणय*
गीतिका
गीतिका
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
बस जाओ मेरे मन में , स्वामी होकर हे गिरधारी
बस जाओ मेरे मन में , स्वामी होकर हे गिरधारी
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
फरवरी तु भी कमाल
फरवरी तु भी कमाल
Deepali Kalra
किस बात की चिंता
किस बात की चिंता
Anamika Tiwari 'annpurna '
तरु वे छायादार
तरु वे छायादार
RAMESH SHARMA
सच में ज़माना बदल गया है
सच में ज़माना बदल गया है
Sonam Puneet Dubey
दर्द देह व्यापार का
दर्द देह व्यापार का
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)
तोहफे में बंदूक
तोहफे में बंदूक
अरशद रसूल बदायूंनी
Loading...