छठ पूजा (गीत)
छठ महोत्सव पर्व
विधा-गीत
कार्तिक षष्ठी शुक्ल तिथि को,
भोर नहा रवि अर्ध्य लगाऊँ।
शुद्ध आचरण, निर्जल रह कर,
छठ पूजा का पर्व मनाऊँ।
पीपल के ले तीन सूप में,
चावल ,रोली, पान,सुपारी।
गन्ना, केला, शहद मिठाई,
खीर, ठेकुआ, बत्ती बारी।
सरिता जल में उतर अर्ध्य दे,
मंत्र पढूँ, निज शीश नवाऊँ।
छठ पूजा का पर्व मनाऊँ।।
“ऊं एहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पया मां भवत्या गृहाणार्ध्य नमोअस्तुते॥”
सूप साथ ले चलीं सुहागन,
साँझ ढले सूरज की लाली।
सुख,संतति, वैभव वर दो माँ,
कोई झोली रहे न खाली।
सकल सृष्टि तब लगे लुभावन,
श्रद्धा से मैं मंगल गाऊँ।
छठ पूजा का पर्व मनाऊँ।।
प्रथम दिवस व्रती लौकी चावल,
दूजा दिन है लोहड,खरना।
तृतीय दिवस संध्या अर्ध्य का,
रजनी काल ठेकुआ चरना।
चौथे दिन रवि भोर अर्ध्य दे,
परंपरागत कथा सुनाऊँ।
छठ पूजा का पर्व मनाऊँ।।
आपस में सद्भाव जताकर,
हिंदू-मुस्लिम सभी मनाते।
अखंडता की ज्योति जगाकर ,
ऊँच-नीच का भेद मिटाते।
मन विकार तजकर निज मन से,
तर्पण कर मैं दीप जलाऊँ।
छठ पूजा का पर्व मनाऊँ।।
डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
वाराणसी (उ. प्र.)