छठि
अतहुँ अहि गाममे,
सुरभित पुष्पक खान देखे,
गगा केर किनारा बैसल ,
स्नेहिल ममता दुलार देखे।
सराबोर गंगा धार देखे,
तरेगन कऽ निहार देखे,
टिकुली साजल नारी केर,
साधिक सुखद संसार देखे।
माटी महक, मादक मधुर,
दिउरी के अँजोर मे, सजधज,
गामक चलन हँसीठोर गीतक,
सपना संग विचार देखे।
अहीं के माटी, एही के रंग,
एहि धरती पर प्रेम के ढंग,
छठि के पर्व, बढिया केर पसार,
भग जोगनि ,पुरखा दुलार देखे।
—श्रीहर्ष—-