छटपटाता रहता है आम इंसान
भारत जैसे देश में
रंगीन दिन की बात
वैसे जैसे कोई छेड़ दे
कोई जख्म अकस्मात
राजधानी दिल्ली अभी
प्रदूषण से रही हैं हांफ
यमुना वर्षों से सरेआम
उगल रही पीड़ा के झाग
सत्तानशीं, हुक्मरानों को
सूझी नहीं युक्तिपूर्ण राह
फिर भला कैसे दिखेगा
आम आदमी में उत्साह
अजब पशोपेश में दिखते
हैं लोकतंत्र के तीनों स्तंभ
देश हित के लिए कड़े फैसले
लेने में भी करते खूब विलंब
सबको सिर्फ अपनी जरूरतों
सुविधाओं का ही रहता ध्यान
ऐसे में हाशिए पर पड़ा बेबस
छटपटाता रहता है आम इंसान
हे ईश्वर मेरे देश के कर्णधारों के
नयनों को दो समुचित ज्योति
ताकि उन्हें दिखाई दे पीड़ाओं
में उलझे आम आदमी की दुर्गति