छंद कुण्डली
मनोरथ नहीं है मनोबल, चाहत सकल जहान्
आत्मविश्वास जगाय के,आत्मबल ले पहचान.
आत्मबल ले पहचान, होय सकल सब जगत.
देखता रह जाये जगत, रहे न कोई अंधभगत,
कहे महेन्द्र कविराय ,निकट न भवबाधा आये,
मिटे हर क्लेश, करतब ऐसे कर सबको भाये.
डॉक्टर महेन्द्र सिंह हंस