#छंद के लक्षण एवं प्रकार
#छंद एवं इसके प्रकार
छंद- वर्ण, मात्रा, यति, गति, लय, तुक से बंधी हुई पंक्तियाँ छंद कहलाती हैं।
छंद के अंग-
1.वर्ण- वर्ण के निम्नलिखित दो प्रकार होते हैं:-
क. ह्रस्व- जिन वर्णों का उच्चारण करते समय एक मात्रा का समय लगता है, उन्हें ह्रस्व वर्ण कहते हैं; जैसे- अ,इ,उ,ऋ।
इनकी एक मात्रा मानी जाती है। इन्हें लघु वर्ण कहते हैं, इनका चिह्न ‘ l ‘ होता है, जिस वर्ण पर चंद्र बिंदु(ँ) लगती है, उसकी भी एक मात्रा मानी जाती है।
ख.दीर्घ- जिन वर्णों का उच्चारण करते समय दो मात्रा का समय लगता है, उन्हें दीर्घ वर्ण कहते हैं; जैसे – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ आदि।
इनकी दो मात्राएँ मानी जाती हैं। इन्हें गुरू की संज्ञा दी जाती है। इनका चिह्न ‘S’ होता है।
नोट- अनुस्वार की गुरू मात्रा मानी जाती है और किसी संयुक्त व्यंजन से पहले लघु मात्रा हो तो वह गुरू मात्रा मानी जाती है। जैसे- अभ्यास- SSl
2.मात्रा- जिस स्वर के उच्चारण में जितना समय लगता है, उसे मात्रा कहते हैं।
3.यति- छंदों को पढ़ते समय जिस स्थान पर विराम लेना पड़े, उन्हीं विराम स्थलों को यति कहा जाता है।
4.गति- छंदों को पढ़ते समय उतार चढ़ाव या प्रवाह का अनुभव ही गति कहलाता है।
5.तुक- कविता या छंदों के पदांत में जो समानता होती है, उसे तुक कहते हैं।
6.लघु और गुरू- ह्रस्व वर्ण को लघु ‘।’ और दीर्घ वर्ण को गुरू ‘S’ कहते है- छंदशास्त्र के नियमानुसार।
गण- गणों की संख्या आठ मानी गई है। क्रमशः यगण, मगण, तगण, रगण, जगण, भगण, नगण, सगण आदि। गणों का प्रयोग वर्णिक छंदों में होता है। सभी गणों को याद रखने का सूत्र है-‘ यमाताराजभानसलगा ‘
1. यमाता- यगण- lSS
2. मातारा- मगण- SSS
3. ताराज- तगण- SSl
4. राजभा- रगण- SlS
5. जभान- जगण- lSl
6. भानस- भगण- Sll
7. नसल- नगण- lll
8. सलगा- सगण- llS
हिंदी के प्रमुख छंद निम्नलिखित हैं:-
1. मात्रिक छंद
2. वर्णिक छंद
3. मुक्त छंद
1. मात्रिक छंद- जिन छंदों में मात्राओं की गणना की जाती है, उन्हें मात्रिक छंद कहते हैं; जैसे- दोहा, चौपाई, रोला, सोरठा, बरवै, कुंडलिया, छप्पय, उल्लाला, हरिगीतिका, गीतिका इत्यादि।
2. वर्णिक छंद- जिन छंदों में वर्णों की गणना की जाती है, उन्हें वर्णिक छंद कहते हैं; जैसे- इन्द्रवज्रा, उपेंद्रवज्रा, घनाक्षरी, सवैया इत्यादि।
3. मुक्त छंद-
जिस छंद में मात्राओं की गणना नहीं की जाती हो, जिसमें भाषा, भाव, रस एवं लय का महत्त्व हो, वह मुक्त छंद कहलाता है।
यह छंद आधुनिक युग की देन है। इस छंद के प्रणेता सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी को माना जाता है। यह छंद नियमबद्ध नहीं होता, इसमें स्वछंद गति और भावपूर्ण यति का महत्त्व होता है।
मुक्त छंद का उदाहरण –
मीठे बोलो बैन,
दिन-रैन मिले चैन, जीवन हो मधुबन-सम, झुकें नहीं नैन।
कांति शांति युक्त बीते हरपल,
जैसे झरना बहता कल-कल,
स्वच्छ सुघर निर्मल निश्छल।
1. दोहा छंद
दोहा एक अर्द्धसममात्रिक छंद है। दोहे में चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम और तृतीय) में तेरह-तेरह मात्राएँ एवं सम चरणों (द्वितीय और चतुर्थ) चरण में ग्यारह-ग्यारह मात्राएँ होती हैं। विषम चरणों का अंत लघु गुरू या तीन लघु से होना चाहिए। सम चरणों के अंत में एक गुरू और एक लघु मात्रा का होना अनिवार्य है।
विषम चरणों के कलों का क्रम चौकल+चौकल+त्रिकल+द्विकल
(4+4+3+2)
या
त्रिकल+त्रिकल+द्विकल+त्रिकल+द्विकल
(3+3+2+3+2)
सम चरणों के कलों का क्रम चौकल+चौकल+त्रिकल
( 3+3+2+3)
या
त्रिकल+त्रिकल+द्विकल+त्रिकल
(3+3+2+3)
उदाहरण-
केतन पाकर जाइये, मिले सदा सत्कार।
बिन केतन के गौण हैं, मनुज देश परिवार।।
2. दोही छंद
दोही मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों(प्रथम एवं तृतीय) में पंद्रह-पंद्रह मात्राएँ और सम चरणों(द्वितीय एवं चतुर्थ) में ग्यारह-ग्यारह मात्राएँ होती हैं। विषम चरणांत लघु गुरू या तीन लघु एवं सम चरणों का अंत गुरू लघु मात्राओं से होना अनिवार्य है।
विषम चरणों के कलों का क्रम
चौकल+चौकल+चौकल+त्रिकल
(4+4+4+3)
या
त्रिकल+त्रिकल+त्रिकल+त्रिकल+त्रिकल
सम चरणों के कलों का क्रम दोहे की तरह ही होता है।
उदाहरण-
चलते रुकते झुकते सभी, समय करे अनुरूप।
इसके आगे लाचार हैं, धनी बली जग भूप।।
3.सोरठा छंद का लक्षण
सोरठा अर्द्धसम मात्रिक छंद है। यह दोहा छंद का बिलकुल उल्टा होता है। इसके विषम चरणों(प्रथम और तृतीय) में ग्यारह-ग्यारह मात्राएँ एवं सम चरणों (द्वितीय और चतुर्थ) चरण में तेरह-तेरह मात्राएँ होती हैं।
उदाहरण-
जयना निज से आप, तभी जय जग में होगी।
खींच रहा मन देख, बात कुछ नग में होगी।।
4.रोला छंद का लक्षण
रोला सममात्रिक छंद है। इसकी प्रत्येक पंक्ति में चौबीस-चौबीस मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक पंक्ति की यति ग्यारह-तेरह मात्राओं पर होती है l प्रत्येक पंक्ति के विषम चरण का अंत गुरू लघु मात्रा से होता है और सम चरण का अंत दो गुरू/दो लघु एक गुरु/एक गुरू दो लघु/चार लघु से होता है।
इसकी दो पँक्तियों में समतुकांत या चारों में समतुकांत रख सकते हैं। यह चत्तुर्पदी छंद है।
इसकी चारों पँक्तियों में कलों का क्रम निम्नवत होता है –
चौकल+चौकल+त्रिकल
(4+4+3) त्रिकल+त्रिकल+द्विकल+त्रिकल
(3+3+2+3)
त्रिकल+द्विकल+चौकल+चौकल
(3+2+4+4)
या त्रिकल+द्विकल+द्विकल+द्विकल+चौकल
(3+2+2+2+4)
उदाहरण-
ग़लती से मत तोड़़, किसी का भी दिल प्यारे।
सबसे हँसके बोल, खोल तू प्रेम पिटारे।
स्वर्ग यहीं पर देख, अनूठे देख नज़ारे।
मोहब्बत से पाक़, नहीं कुछ पास हमारे।
5.चौपाई छंद का लक्षण
चौपाई एक सममात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में सौलह-सौलह मात्राएँ होती हैं। चरणांत में जगण तगण का निषेध होता है। चरणांत में दो गुरू/दो लघु एक गुरू/एक गुरू दो लघु छंद को मनभावन बना देते हैं।
उदाहरण-
प्रभु अविनाशी जय शिव भोले।
सकल सृष्टि ताण्डव से डोले।।
ताप विनाशक मंगलकारी।
भाये तुमको वृषभ सवारी।।
चंद्र-भाल पर गंगा कुंतल।
हाथ त्रिशूला नैना निश्छल।।
गले सर्प बाघम्बर धारे।
भस्म कलेवर गौरा प्यारे।।
6. कुंडलिया छंद का लक्षण
कुण्डलिया एक विषम मात्रिक छंद है। यह छह चरणों से मिलकर बनता है। इसके प्रत्येक चरण में चौबीस-चौबीस मात्राएँ होती हैं। एक दोहा और एक रोला छंद जुड़कर कुंडलिया छंद बनता है। दोहे का अंतिम चरण ही रोले का प्रथम चरण होता है। विशेष बात यह है कि जिस शब्द से कुण्डलिया छंद का आरम्भ होता है, उसी शब्द से यह समाप्त होता है।
उदाहरण-
जानो सच्ची बात सब, बड़ा व्यक्ति से देश।
अहं भाव को छोड़ दो, यही सर्व आदेश।।
यही सर्व आदेश, फलेंगे मिलकर सारे।
देश प्रेम के साथ, गुँजेंगे जब भी नारे।।
रहना है आज़ाद, देश प्रेमी बन मानो।
शान आपकी देश, देश से खुद को जानो।।
7. उल्लाला छंद का लक्षण
उल्लाला एक सम मात्रिक छन्द है। इसके दो प्रकार होते हैं। एक प्रकार में, इसके प्रत्येक चरण में तेरह-तेरह मात्राओं के अनुरूप छब्बीस मात्राएँ होती है। तेरह मात्राओं में ग्यारहवीं मात्रा लघु होनी चाहिए। दूसरे प्रकार में पंद्रह-तेरह के अनुरूप अट्ठाइस मात्राएँ होती हैं। पंद्रह मात्राओं वाले उल्लाला छन्द में तेरहवीं मात्रा लघु होती है। उल्लाला छन्द को चन्द्रमणि छंद के नाम से भी जाना जाता है।
उल्लाला छंद का पहला प्रकार(13-13=26 मात्राएँ)
उदाहरण-
दर्द पढ़ेगा कौन अब, व्यस्त सभी निज मान में।
ख़ून चूसते और का, भ्रमित रहें अभिमान में।।
उल्लाला छंद का दूसरा प्रकार (15 +13=28 मात्राएँ)
उदाहरण-
अभिशाप कहेंगे मुफ़लिसी, पूछो हर इंसान से।
सत्य यही है सच मानिए, कमल हँसे निज मान से।।
8. हरिगीतिका छंद
हरिगीतिका सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में यति सौलह बारह पर होती है, अर्थात् प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं। चरणांत में लघु गुरु मात्राओं का आना अनिवार्य होता है। प्रत्येक चरण के अन्त में रगण आना चाहिए।
SSlS की चार आवृत्तियों से बना रूप हरिगीतिका छंद का मनभावन अतिसुंदर रूप होता है, जिसको श्रीगीतिका भी कहा जाता है। llSlS की चार आवृत्तियों से भी हरिगीतिका छंद ही बनता है, SSlS की चार आवृत्तियों से श्रीगीतिका तथा दोनों प्रकार(SSlS) तथा llSlS)की चार आवृत्तियों से मिश्रितगीतिका छंद बनता है। इसके चारों चरणों में तुकांत या दो चरणों में तुकांत होता है।
उदाहरण-
आओ मिलें रूठे नहीं यूँ,
बात हों हँस प्यार से।
देखो हमें चाहो हमें ही,
कुछ नये दीदार से।।
जीना सदा जीवन मिला जो,
इक खिले गुलज़ार-सा।
रोते हुये जीना कहूँ मैं,
जो लगे है खार-सा।।
9. बरवै छंद
बरवै अर्द्ध सम मात्रिक छंद होता है। इसके प्रथम एवं तृतीय चरणों में बारह-बारह मात्राएँ और द्वितीय और चतुर्थ चरणों में सात-सात मात्राएँ होती हैं। सम चरणांत जगण(1S1) से होना चाहिए है।
उदाहरण-
चलते रहिए पथ में, लिए ख़ुमार।
मंज़िल सपना सच हो, स्वयं सुधार।।
10. गीतिका छंद
गीतिका एक सममात्रिक छंद है। जिसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 26-26 मात्राएँ होती हैंहै। प्रत्येक चरण की यति 14-12 मात्राओं पर होती है। चरणांत लघु-गुरू मात्रा से होना अनिवार्य है। इस छंद में प्रत्येक चरण की तीसरी, दसवीं, सत्रहवीं और चौबीसवीं मात्राएँ लघु हों तथा अंत में रगण हो तो छंद निर्दोष व मधुर होगा।
उदाहरण-
देखते हैं नैन मेरे, हर किसी के नैन में।
तुम बसे हो श्याम मेरे, हर किसी के चैन में।।
रात-दिन में नाम तेरा, ध्यान तेरा ही रहे।
देखलो आ श्याम मेरे, हाल क्या है मन कहे।।
11. छप्पय छंद
छप्पय विषम मात्रिक छन्द होता है। यह दो छंदों(रोला+उल्लाला) के योग से बनता है। रोला (11+13) चतुर्पदी एवं उल्लाला (15+13) के द्विपदी छंद है।
इस प्रकार छप्पय षट्पदी छंद है।
उदाहरण-
शक्ति रूप हैं आप, गुणों के मानो स्वामी।
हीनभाव दो छोड़, दूर होंगी नाकामी।।
लिए रोशनी भानु, चाँदनी हिमकर देता।
मनुज करे श्रम नेक, सफलता हर छू लेता।।
कमज़ोरी होती सोच में, सोच बड़ी में शान है।
अंतर आईना झाँकिये, इसमें हीरक खान है।।
12. मधुमालती छंद
मधुमालती छंद में चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 14 मात्राएँ होती हैं, अंत में गुरू-लघु-गुरू वाचिक भार होता है। प्रत्येक चरण की 5-12 वीं मात्रा का लघु होना अनिवार्य है।
उदाहरण-
सीखो यहाँ जाना कहाँ,
लेना यहीं देना यहाँ।
जोड़ो नहीं भोगो सदा,
सच्ची वफ़ा यूँ हो अदा।।
13. विजात छंद
विजात छंद में चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में चौदह-चौदह मात्राएँ होती हैं। चरणांत में 3 गुरू मात्राओं का वाचिक भार होता है। प्रत्येक चरण की पहली तथा आठवीं मात्राएँ लघु होनी अनिवार्य हैं।
उदाहरण-
हमें तो श्याम ही भाता,
ज़ुबां पे नाम ये आता।
वफ़ा से जो पुकारा है,
उसे देता सहारा है।।
14. मनोरम छंद
मनोरम छंद में चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में चौदह-चौदह मात्राएँ होती हैं। आदि में गुरू और अंत में गुरू-लघु-गुरू या लघु-गुरू-गुरू मात्राएं होती हैं। इसके प्रत्येक चरण की तीसरी तथा दसवीं मात्राएँ लघु(1) होनी अनिवार्य है।
उदाहरण-
आसमानों का इरादा,
हो स्वयं से आज वादा।
तोड़़ लाओगे सितारे,
यत्न होंगे जो तुम्हारे।।
15. शक्ति छंद
शक्ति छंद में चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 18-18 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक चरण के अंत में वाचिक भार लघु-गुरू होता है। हर चरण की पहली, छठी,ग्यारहवीं तथा सोलहवीं (1,6,11,16 ) मात्राएँ लघु (1) होनी अनिवार्य हैं।
उदाहरण-
जहाँ हो वहीं से शुरू हो चलो,
बदी को हराओ गुरू हो चलो।
वफ़ा साथ हो जो निगाहों भरी,
अदा रोक दे ये गुनाहों भरी।।
16. पीयूष वर्ष छंद
पीयूष वर्ष छंद में चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 10+9=19 मात्राएँ होती हैं। चरणांत में लघु-गुरू(1-2) मात्राएं होती हैं। प्रत्येक चरण की तीसरी, दसवीं एवं सतरहवीं (3,10,17) मात्राएँ लघु (1) होनी अनिवार्य हैं। इसमें एक गुरू के लिए दो लघु की छूट नहीं होती।
उदाहरण-
हो दिलों में प्रेम, नातें वो कहो,
जो करें आबाद, बातें वो कहो।
है भला भी मौन, कोरे झूठ से,
छाँव पाए कौन, सोचो ठूँठ से।।
17. सगुण छंद
सगुण छंद में चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 19 मात्राएँ होती हैं, इसके आदि में लघु(1) और अंत में लघु-गुरू-लघु (1S1) आते हैं, प्रत्येक चरण की पहली, छठी, ग्यारहवीं, सौलहवीं एवं उन्नीसवीं (1,6,11, 16,19) वीं मात्राएँ लघु (1) होती हैं।
उदाहरण-
ज़माना कहेगा हमें क्या हुज़ूर,
इसी सोच से हों दिलों पे कसूर।
तुम्हें ठीक जो भी लगे वो निखार,
गुलों को खिलाए सदा ज्यों बहार।।
18. सुमेरु छंद-
सुमेरु छंद में चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 12+7=19 या 10+9=19 मात्राएँ होती हैं। इसके प्रत्येक चरण की 12, 7 या 10, 9 पर यति होती है। इसके आदि में लघु मात्रा (1) आती है जबकि अंत में SSl, SlS,lSl, SSS वर्जित हैं तथा 1, 8,15 वीं मात्राएं लघु 1 होती हैं।
उदाहरण-
चलोगे तो तुम्हारी, जीत होगी,
यही आगे सभी की, रीत होगी।
उजालों से अँधेरे, ख़ौफ़ खाते,
जहाँ हो सत्य झूठे, चौंक जाते।।
19. शास्त्र छंद
शास्त्र छंद में चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 20-20 मात्राएँ होती हैं ; अंत में गुरू-लघु (S-l) मात्राएँ आती हैं तथा प्रत्येक चरण की 1, 8,15, 20 वीं मात्राएँ लघु होती हैं।
उदाहरण-
सहारा है जहां में राम का नाम,
लिए जाओ खिलें आठों यहाँ याम।
भरोसा हो जिन्हें वो ही करें ध्यान,
लगे जो लग्न तो होते समाधान।।
20. सिन्धु छंद
सिन्धु छंद में चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में इक्कीस(S1) मात्राएँ होती हैं और प्रत्येक चरण की 1, 8,15 वीं मात्राएँ लघु (1) होती हैं।
उदाहरण-
विजय पाओ बुराई पर मिटे हर ग़म,
कभी आँखें नहीं हों फिर तुम्हारी नम।
हँसोगे ख़ुद हँसाओगे ज़माने को,
बना लोगे मधुर जीवन तराने को।।
21.बिहारी छंद
बिहारी छंद में चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 14+8=22 मात्राएँ होती हैं, प्रत्येक चरण की यति 14, 8 मात्राओं पर होती है। हर चरण की 5, 6,11,12,17,18 वीं मात्राएँ लघु (1) होती हैं।
उदाहरण-
आधार सही सोच नयी शान बढ़ाए,
जो रीत लिए रूह वही मान दिलाए।
आकाश बनो रोज नया चंद्र सजाओ,
यूँ रूप लिए राग लिए रंध्र खिलाओ।।
22. दिगपाल छंद
दिगपाल छंद में चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 24-24 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक चरण में यति 12, 24 होती है। आदि में समकल आता है और 5, 8,17, 20 वीं मात्राएँ लघु (1) होती हैं। इस छंद को मृदुगति भी कहते हैं।
उदाहरण-
चाहूँ तुझे हमेशा, ऐसी वफ़ा निभाऊँ।
भूलूँ न मैं किसी पल, ऐसी रज़ा सजाऊँ।।
हर रात-दिन हसीं हो, ऐसी लिखें कहानी।
हो संग दो दिलों का, आए नयी रवानी।।
23. सारस छंद
सारस छंद में चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं, 12,12 मात्राओं पर यति होती है; आदि में विषम कल होता है और 3,4,9,10,15,16,21,22 वीं मात्राएँ अनिवार्यतः लघु (1) होती हैं।
उदाहरण-
दूर नहीं मंज़िल है, तेज़ क़दम और करो।
शूल बनें फूल तभी, लक्ष्य चमन हृदय धरो।।
धैर्य रखो शील बनो, लग्न लगा मग्न बनो।
जीत तुम्हें खोज़ रही, सोच यही सोच तनो।।
24. गीता छंद
गीता छंद में चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 26-26 मात्राएँ होती हैं; हर चरण की यति 14,12 पर होती है। आदि में समकल आता है; अंत में गुरू-लघु (S-1) मात्राएँ आती हैं; और 5,12,19, 26 वीं मात्राएँ अनिवार्यतः लघु (1) होती हैं।
उदाहरण-
मालिक करो इतनी कृपा, विद्या बढ़े नित ज्ञान।
आशीष पाएँ आसरा, तेरा रहे बस ध्यान।।
जीवन दिया है आपने, इसको सुधारो आप।
पलपल रहे इस रूह में, बसकर तुम्हारा ताप।।
25. शुद्ध गीता छंद
शुद्ध गीता छंद में चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 27-27 मात्राएँ होती हैं। हर चरण में यति 14,13 मात्राओं पर होती है। दो चरणों तुकांत होना अनिवार्य है। हर चरण के आदि में गुरू-लघु (2,1) मात्राएँ आती हैं तथा 3,10,17,24, 27 वीं मात्राएँ लघु होती हैं l
उदाहरण-
इश्क़ शायर ने किया है, तोड़ दो चाहे करार।
गीत गूँजेंगे तुम्हारे, पाक दिल की है पुकार।।
रूह से आएँ निकलकर, वो लिखे जाएँ विचार।
हों अमर जाए जगत् में, एक शायर का ख़ुमार।।
26. विधाता छंद
विधाता छंद में चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 28-28 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक चरण में यति14 -14 मात्राओं पर होती है। हर चरण की 1, 8,15, 22 वीं मात्राएँ लघु (1)होती हैं। विधाता छंद को शुद्धगा भी कहते हैं।
उदाहरण-
तराना मैं लिखूँ ऐसा, सुने जो झूम वो जाए।
लबों पर बोल हों मेरे, जिन्हें हर रूह से गाए।।
अमर लय ताल शब्दों की, जगह दिल में बनाएगी।
रिझाकर ज़िंदगी यारों, तुम्हें पलपल हँसाएगी।।
27. हाकलि छंद
हाकलि एक सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 14-14 मात्राएँ होती हैं। तीन चौकल के बाद एक गुरू(S) होता है। यदि तीन चौकल अनिवार्य न हों तो यही छंद ‘मानव’ बन जाता है।
उदाहरण-
देखा करता जो सपने,
सच करता अरमां अपने।।
सुख-वैभव उसको मिलता,
जो पथ में हँसके चलता।।
28. मानव रूप
उदाहरण-
धैर्य रखो तुम हो मानव,
श्रेष्ठ छिपा तुम में अभिनव।।
शील शक्ति सुंदरता हर,
विजय मिले दानवता पर।।
29. चौपई छंद
चौपई सम मात्रिक छंद होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रयेक चरण में पंद्रह-पंद्रह मात्राएं होती हैं, प्रत्येक चरण के अंत में गुरू-लघु मात्राओं का आना अनिवार्य होता है। इसके दो-दो चरणों में तुकांत होता है। इस छंद को जयकरी भी कहते हैं।
उदाहरण-
रात चाँदनी में बरसात,
सही नहीं समझो हालात।
शीशे पर पत्थर का वार,
उजड़ा हो जैसे गुलज़ार।।
30. पदपादाकुलक छंद
पदपादाकुलक एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं। चरण के आदि में द्विकल अनिवार्य होता है और त्रिकल वर्जित होता है। पहले द्विकल के बाद यदि त्रिकल आता है तो उसके बाद एक और त्रिकल आना चाहिए, इस छंद में क्रमागत दो-दो चरण तुकान्त होते हैं।
उदाहरण-
डर से नहीं काम हो मन से,
शिकवा फिर कैसा जीवन से।
चाहत से हिम्मत मिलती है,
हिम्मत से मुश्क़िल ढ़लती है।
31. शृंगार छंद
शृंगार एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं। आदि में क्रमागत त्रिकल-द्विकल (3+2) और अंत में क्रमागत द्विकल-त्रिकल (2+3) आते हैं। क्रमागत दो-दो चरण तुकांत होते हैं।
उदाहरण-
पिता-माता की मानें बात,
पुत्र-पुत्री फूलें दिन-रात।।
नहीं करते इनका जो मान,
ख़ुशी से रहते वह अनजान।।
32. राधिका छंद
राधिका एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 22-22 मात्राएँ होती हैं, प्रत्येक चरण में 13, 9 पर यति होती है। यति से पहले और बाद में त्रिकल आता है, क्रमागत दो-दो चरण तुकांत होते हैं।
उदाहरण-
तुम करलो सबसे प्रेम, घृणा को भूलो,
ऐसी सीखो तुम रीत, दिलों को छू लो।
सूरत सीरत शुभ चाल, मान दिलवाएँ,
मीठे-मीठे निज बोल, सभी को भाएँ।
33. कुण्डल/उड़ियाना छंद
कुण्डल एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 22-22 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक चरण की 12,10 मात्राओं पर यति होती है। यति से पहले और बाद में त्रिकल आता है। और अंत में दो गुरू (2-2) मात्राएँ आती हैं। यदि अंत में एक ही गुरु मात्रा (2 )आती है तो उसे उड़ियाना छंद कहते हैं।, इसमें क्रमागत दो-दो चरण तुकांत होते हैं।
कुंडल छंद का उदाहरण-
नैना दो हुए चार, बढ़ी यूँ ख़ुमारी।
प्रेम लग्न करे मग्न, बनाकर पुजारी।।
निशि-वासर प्रिया ध्यान, मुझे सब भुलाए।
मधुर स्वप्न भी निखार, प्रिया छवि दिखाए।।
34. उड़ियाना छंद का उदाहरण-
मेरा भारत महान, तिरंगा शान है।
गंगा है पाक रीत, हिमालय मान है।।
जन-गण-मन राष्ट्र-गान, काँत हृदय करता।
वंदेमातरम् गीत, शाँत हृदय करता।।
35. रूपमाला छंद
रूपमाला एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 24-24 मात्राएँ होती हैं। हर चरण की यति 14,10 मात्राओं पर होती है। प्रत्येक चरण के आदि और अंत में वाचिक भार 21(गुरू-लघु) होता है। क्रमागत दो-दो चरणों में तुकांत होता है। इसका दूसरी संज्ञा मदन छंद भी है।
उदाहरण-
जोश रखो पर होश लिए, कार्य हो आसान।
सत्य यत्न में जीत छिपी, कंठ में ज्यों गान।।
शक्ति मनुज में असीम हैं, ज्ञान बिना अज्ञात।
मेघ भरा ज्यों जल से है, ज्ञात जब बरसात।।
36. मुक्तामणि छंद
मुक्तामणि एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 25-25 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक चरण में यति तेरह,बारह (13,12) मात्राओं पर होती है। यति से पहले वाचिक भार लघु-गुरू(1-2) और चरणान्त में वाचिक भार दो-गुरू (2-2) होता है। दो-दो चरणों में तुकांत होता है। दोहा छंद के द्वितीय एवं चतुर्थ चरण के अंत में एक-एक लघु मात्रा बढ़ा देने से मुक्तामणि छंद बनता है।
उदाहरण-
तेरे बिन ये ज़िन्दगी, नहीं ज़िन्दगी मेरी।
जला रही दिल हर घड़ी, कमी आग बन तेरी।।
गीत अधूरा धुन बिना, हाल यही है मेरा।
जहाँ देखता हूँ वहीं, दिखे चेहरा तेरा।।
37. गगनांगना छंद
गगनांगना एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 25-25 मात्राएँ होती हैं। हर चरण में यति 16, 9 पर होती है। चरणान्त में गुरू-लघु-गुरू( S1S)आता है। क्रमागत इसके दो चरणों में तुकांत अनिवार्य है।
उदाहरण-
करुणा और अहिंसा अपना, इन्हें न भूलना।
सब जीवों में नूर ख़ुदा का, कभी न छीनना।।
दुख देकर तुम किसी जीव को, निज से हीन हो।
लाचारों का शोषण करके, बनते दीन हो।।
38. विष्णुपद छंद
विष्णुपद एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 26-26 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक चरण में यति 16,10 मात्राओं पर होती है। अंत में वाचिक भार गुरू मात्रा (2) होता है। क्रमागत दो-दो चरणों में तुकांत होता है।
उदाहरण-
सज़दा मैं हर हाल करूँगा, देना शक्ति मुझे।
ख़ुद को चाहे भूलूँ मालिक, भूलूँगा न तुझे।।
आशीष रहे मुझपर तेरा, यह अरदास करूँ।
सत्य मार्ग पर चलूँ सदा मैं, संकट से न डरूँ।।
39. शंकर छंद
शंकर एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 26-26 मात्राएं होतीं हैं। इसके प्रत्येक चरण की यति 16,10 मात्राओं पर होती है। चरणान्त में गुरू लघु (S1) मात्राएँ आती हैं। इसमें क्रमागत दो-दो चरणों में तुकांत होता है।
उदाहरण-
साथी ऐसा गीत सुनाओ, भर दे मन उमंग।
प्रीत बढ़े उर मस्ती छाए, भाव लें नवरंग।।
मकरंद लबों का शब्द छुएँ, बनें सुरभित फूल।
जो जानेगा इन फूलों को, बने कभी न शूल।।
40. सरसी छंद
सरसी एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 27-27 मात्राएँ होती हैं। हर चरण की यति 16,11 मात्राओं पर होती है। चरणान्त में गुरू-लघु (S-1)मात्राएँ आना अनिवार्य है। क्रमागत दो-दो चरणों में तुकांत होता है। इस छंद के अन्य नाम कबीर या समंदर छंद भी होते हैं। चौपाई का कोई एक चरण और दोहे का सम चरण मिलाने से सरसी छंद का एक चरण बन जाएगा।
उदाहरण-
हँसके जीना हरपल यारों, जीवन है अनमोल।
सबसे करलो प्रीत जगत् में, मीठे बोलो बोल।।
नयन मिलाकर दिल में बसना, दिलदारों का काम।
दिल को पढ़ना सीख लिया तो, मस्ती आठों याम।।
41. रास छंद
यह एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 22-22 मात्राएँ होती हैं। हर चरण में 8,8,6 पर होती है। अंत में दोलघु एक गुरू मात्रा (11S) आती हैं। सरसी छंद के क्रमागत दो-दो चरणों तुकांत होते हैं।
उदाहरण-
प्रेम प्रकृति से, रहे सदा ही, मूल यही।
जैसी यह हो, वैसा जीवन, बात सही।।
बिना प्रदूषण, रोग नहीं हैं, स्वर्ग धरा।
हरियाली से, खुशहाली हो, वचन खरा।।
42. निश्चल छंद
निश्चल एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 23-23 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक चरण में यति 16, 7 मात्राओं पर यति होती है और चरणान्त में गुरू-लघु (S-1) मात्राएँ आती हैं। इस छंद में क्रमागत दो-दो चरणों में तुकांत होते हैं।
उदाहरण-
दिल का दिल से सदा दीजिए, आप ज़वाब।
रिश्तों के सजे रहेंगे यूँ, सुंदर ख़्वाब।।
करना पड़ता है चाहत में, कुछ तो त्याग।
घुलता है ऐसे जीवन में, मीठा राग।।
43. सार छंद
सार एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 28-28 मात्राएँ होती हैं। इसके हर चरण की यति सौलह-बारह(16,12) मात्राओं पर यति होती है। अंत में दो गुरू मात्राएँ आती हैं। इस छंद में क्रमागत दो-दो चरणों तुकांत होते हैं।
उदाहरण-
महक प्यार की तुम बिखराओ, तुझे गुलाब लिखूँगा।
दिल में मेरे जगह बनाओ, मैं आदाब करूँगा।।
भर दूँगा रंग मुहब्बत के, हूँ तेरा दीवाना।
जितना प्रेम करोगी मुझसे, उससे ज़्यादा पाना।।
44. लावणी छंद
लावणी एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 30-30 मात्राएँ होती हैं। हर चरण में यति सौलह, चौदह (16,14) मात्राओं पर होती है। इस चरण में क्रमागत दो-दो चरणों में तुकांत होते हैं। इसके प्रत्येक चरणान्त में तीन गुरू (SSS) अनिवार्य होने पर ताटंक छंद, दो गुरू (SS) मात्राएँ आने पर ‘कुकुभ छंद’ और एक गुरू(S) या दो लघु मात्राएँ आने पर लावणी छंद बनता है
उदाहरण-
किसी दिशा में जाकर देखो, पहरा पाओगे यम का।
करो सामना डटकर हँसकर, आने वाले हर ग़म का।।
दोष किसी को देना भूलो, निज सुख-दुख के कारण तुम।
सत्य जगत् का कुटिल यही है, इसको करलो धारण तुम।।
45. वीर/आल्हा छंद
वीर एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 31-31 मात्राएँ होती हैं। हर चरण में यति सौलह, पन्द्रह (16,15) पर होती है। चरणान्त में गुरू-लघु ( S-1) मात्राएँ आती हैं। इस छंद के क्रमागत दो-दो चरणों में तुकांतता होती है। इसका दूसरा नाम ‘आल्हा छंद’ भी है।
उदाहरण-
भारत भूमि है वीरों की, संस्कारों का अद्भुत ठाँव।
शहर अनोखे यहाँ देखिए, देख लीजिए सुंदर गाँव।।
देश-प्रेम की ख़ूब मिसालें, वेद पुराणों का है शोर।
शाम रंगीली सुबह सुहानी, हर मौसम मानो चितचोर।।
46. त्रिभंगी छंद
त्रिभंगी एक सम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 32-32 मात्राएँ होती हैं। हर चरण में यति 10, 8, 8, 6 मात्राओं पर होती है। प्रत्येक चरण के चरणान्त में गुरू (S) मात्रा आती है। इस छंद में क्रमागत दो-दो चरणों में तुकांत होता है।
उदाहरण-
नारी कब हारी, सबपर भारी, लगती प्यारी, मानो तो।
अबला समझो मत, छोड़ो आदत, अच्छी फ़ितरत , जानो तो।।
संस्कार सिखाए, दो घर छाए, ख़ुशियाँ लाए, रहे अनूठी।
नेक विचारों से, शृंगारों से, व्यवहारों से, जो मीठी।।
47. कुण्डलिनी छंद
कुण्डलिनी एक विषम मात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। दोहा छंद और अर्द्ध रोला को मिलाकर कुण्डलिनी छंद बन जाता है। किंतु दोहा छंद के चतुर्थ चरण से अर्द्ध रोला(सोरठा) का का प्रारंभ होता है। इस छंद के प्रारंभिक शब्द या शब्दों से छंद का समापन कर सकते हैं। लेकिन यह ज़रूरी नहीं है। क्रमागत दो-दो चरणों तुकांत होता है।
दोहा +सोरठा = कुंडलिनी छंद
सबका देते साथ प्रभु, इतना रहे यकीन।
यह जीवन मीठा लगे, लगे कभी नमकीन।।
लगे कभी नमकीन, समझता इसको प्यारा।
धैर्य रखा बन मौन, नहीं दुःख से वह हारा।।
2. वर्णिक छंद….
48. प्रमाणिका छंद
इसके चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 8-8 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण में वर्णों का क्रम लघु-गुरु-लघु-गुरु-लघु-गुरु-लघु-गुरु (।ऽ।ऽ।ऽ।ऽ) होता है।
गणों में लिखे तो जगण-रगण-लगण-गगण।
उदाहरण-
लिखो कभी कहो कभी।
ज़वाब दो सही सभी।।
छिपा न सत्य जानलो।
सदैव गाँठ बाँधलो।।
49. वियोगिनी छंद
इसके सम चरण में 11-11 और विषम चरण में 10 वर्ण होते हैं।
विषम चरणों में दो सगण, एक जगण, एक गुरू और सम चरणों में एक सगण एक भगण एक रगण एक लघु व एक गुरु आते हैं।
उदाहरण-
हँसके कर रोज काम तू,
प्रभु का लेकर नाम रीति से।
सबकी सुनते पुकार हैं,
जपलो नाम ख़ुमार नीति से।।
50. इन्द्रवज्रा छंद
इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में 11-11 वर्ण होते हैं। वर्ण क्रम क्रमशः दो तगण, एक जगण और दो गुरू का होता है।
उदाहरण-
माता-पिता की हर बात मानो।
संतान अच्छी बन नेह जानो।।
सच्चे बनो लीक नयी बनाओ।
ऊँचे उठो शक्ति महा दिखाओ।।
51. उपेंद्रवज्रा छंद
इसमें चार चरण होते हैं। इसके प्रत्येक चरण में एक जगण, एक तगण, एक जगण और दो गुरू के क्रम से ग्यारह वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण में पाँचवें वर्ण पर यति होती है।
उदाहरण-
असीम भेटें, शुभ काम देता।
मुकाम यादें, यह नाम देता।।
सही विचारो, फल नेक होगा।
सभी दिलों से, अभिषेक होगा।।
सवैया छंद एवं प्रकार-
1.मदिरा सवैया- यह 22 वर्णों का सबसे छोटा सवैया छंद है। इसमें सात ‘भगण’ एक गुरू आता (SII×7+S) है।
मदिरा सवैया-
पावन भूमि मिली जिसको उसका मन प्रीति लिए हँसता।
गीत नये लिख नूतन जीवन की वह रीत जुदा लिखता।।
चंदन हो मन मानव का निज जीवन का विष भी मिटता।
राह चले नित सुंदरता उर में भर लक्ष्य नये गढ़ता।।
2. मत्तगयंद या मालती सवैया – इसमें 23 वर्ण होते हैं। इसमें सात भगण(SII) और दो गुरू(SS) आते हैं।
SII SII SII SII SII SII SII SS
मत्तगयंद या मालती सवैया-
वैभव पाकर दंभ नहीं मन में वह मानव है हितकारी।
बात सुने उर ध्यान धरे सबकी वह मानव है बलिहारी।।
प्रेम लिए चलता पथ में हर संकट पे बनता वह भारी।
जीवन के रण में हँस के हर जीत सके उलझी हर पारी।।
3. किरीट सवैया – 24 वर्णों के इस छंद में आठ भगण(SII×8) आते हैं।
SII SII SII SII SII SII SII SII
किरीट सवैया-
यत्न करो तुम मौन बने गुणगान स्वयं जग में फल से कल।
धैर्य लिए कर कर्म सदा फिर देख मुसीबत का मिलता हल।।
आतिश हो उर में जब नींद नहीं तब मंज़िल लोचन काजल।
चाहत एक दवा बनके मन को नित दे चिर नूतन संबल।।
4. अरसात सवैया – 24 वर्णों के इस सवैये में सात भगण(SII×7) और गुरू-लघु-गुरू(SIS) वर्ण आते हैं।
SII SII SII SII SII SII SII SIS
अरसात सवैया-
आदत हों शुभ नेक रहे मन जीवन पावन रीत जरे यहाँ।
शोभित हो घर आँगन प्रेम सभी जन में गर गीत भरे जहाँ।।
है सुख तो निज में सुन और तलाश विनीत करे कहाँ।
चाहत हो दिल की दिल से हर आफ़त मालिक मीत हरे वहाँ।।
5. चकोर सवैया- 23 वर्णों के इस छंद में सात भगण(SII×7) के साथ चरणांत में गुरू-लघु वर्ण होते हैं। इसमें चार चरण होते हैं।
मापनी- SII SII SII SII SII SII SII SI
चकोर सवैया-
राम बसे उर में जिसके विष जीवन से मिटता सब मीत।
धूप जहाँ रहती नित हो धरती वह रोशन शोभित शीत।।
राम रमे मन में जब धारण हों गुन लग्न लगे उर जीत।
‘प्रीतम’ हर्षित होकर ध्यान धरो रचलो तुम सुंदर गीत।।
6. सुमुखी सवैया – 23 वर्णों के इस सवैये में सात जगण और लघु-गुरू(ISI×7+IS) वर्ण आते हैं।
मापनी- ISI ISI ISI ISI ISI ISI ISI IS
सुमुखी सवैया-
मिलें जब नैन नहीं फिर चैन मिले दिल को सुमुखी सुनलो।
क़रीब रहो दिल के हँस चाहत के पथ की सुमती बुनलो।।
कहो हर बात सुधी बन संग रहे खिलता महकी धुन लो।
अपार ख़ुशी मिलती उर की गति रूह कहे रमती चुनलो।।
7. दुर्मिल सवैया- 24 वर्णों के इस सवैये के प्रत्येक चरण में आठ सगण (IIS×8) आते हैं।
मापनी- IIS IIS IIS IIS IIS IIS IIS IIS
हँसते-हँसते कर काम शिकायत की फिर बात नहीं मन में।
यह जीवन भार नहीं जब यत्न रहे जिसके नित यौवन में।।
अपनेपन के नग़में बसते रचते नव रीत सदा जन में।
ख़ुशियाँ घन ज्यों भरते बरसें खुलके जब ख़ूब धरा तन में।।
52. मालिनी छन्द
मालिनी एक सम वर्ण वृत छन्द है। इसके प्रत्येक चरण में दो ‘नगण’ एक ‘मगण’ और दो ‘यगण’ के क्रम से 15-15 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण में आठवें और सातवें वर्णों पर यति होती है।
उदाहरण-
सुन-सुन मन मेरे, मैं वहाँ तू जहाँ भी।
रहकर वश मेरे, दौड़ ले तू कहाँ भी।।
विजय निकट होगी, जीत जाऊँ तुझे रे।
अवसर तुझसे ही, दे सहारा मुझे रे।।
53. कवित्त छंद
कवित्त एक वार्णिक छन्द है। इसमें चार चरण होते हैं और प्रत्येक चरण में 16, 15 के विराम से 31 वर्ण होते हैं। प्रत्येक चरण के अन्त में गुरू वर्ण होना चाहिये। छन्द की गति को ठीक रखने के लिये 8, 8, 8 और 7 वर्णों पर यति रहनी चाहिये। इसके दो प्रकार हैं:-
1.मनहरण कवित्त और घनाक्षरी। घनाक्षरी छंद के दो भेद हैं:- 1.रूप घनाक्षरी, 2.देव घनाक्षरी।
उदाहरण-
ज्ञान बिना मान नहीं, आन बिना लक्ष्य नहीं,
त्याग बिना प्रेम नहीं, सोच यही ठानिए।
मीत बिना गीत नहीं, रीत बिना राह नहीं,
कर्म बिना वाह नहीं, साँच यही मानिए।।
आदि बिना अंत नहीं, शाँति बिना संत नहीं,
धर्म बिना पंथ नहीं, बात सभी जानिए।
दृष्टि बिना दृश्य नहीं, वृष्टि बिना सृष्टि नहीं,
हार जहाँ जीत वहाँ, सीख अदा तानिए।।
शिखरिणी छंद
लक्षण- शिखरिणी एक सम-वर्णिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में यगण, मगण, नगण, सगण, भगण, और चरणांत में लघु गुरू वर्ण आते हैं। अतः इसके प्रत्येक चरण में छह, ग्यारह की यति से सत्रह-सत्रह वर्ण होते हैं।
यमाता मातारा नसल सलगा भानस लगा।
#सुहाने पल/शिखरिणी छंद
निभाना है तो प्रेम नित दिन निभाना हृदय से।
बनेंगे नाते छाँव प्रतिपग लुभाना विनय से।।
नयी आशाएँ आन बनकर सजाएँ कल यहाँ।
बनाओगे मुस्क़ान भरकर सुहाने पल यहाँ।।
सुनो मेरी हाँ आप हँसकर निखारो हुनर को।
हरा दोगे यूँ आप निखरकर सोचो क़मर को।।
परेशानी क्या मीत हँस-हँस करो कार्य मन से।
हटा दोगे यूँ पंक शतदल बनो आर्य तन से।।
सुनाते हो दीदार कर-कर हमेशा नज़र से।
बता ही दो रे बात दिलबर दिली जो ज़िगर से।।
छिपाना भी लाचार कर-कर हरा दे समर में।
जिताते हैं वो गीत घुलकर सुहाएँ असर में।।
गिराते हैं जो लोग गिरकर वही शर्मतर हों।
सदा देते जो साथ हरपल वही वाह भर हों।।
बुराई यारों छोड़ कर तुम ज़रा प्रेम चखलो।
भुलादो यारों द्वेष मनभर यहाँ प्रेम करलो।।
#आर.एस.’प्रीतम’
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