छंदानुगामिनी( गीतिका संग्रह)
छंदानुगामिनी: एक अद्भुत, महनीय कृति
———————————————————-
समीक्ष्य कृति- छंदानुगामिनी ( गीतिका संग्रह)
रचनाकार- मनोज मानव
प्रकाशक- साक्षी प्रकाशन संस्थान,सुल्तानपुर ( उ प्र)
प्रकाशन वर्ष- 2019
मूल्य-रु 180/ पेपर बैक
मनोज मानव प्रणीत छंदानुगामिनी नव स्थापित विधा गीतिका की अमूल्य धरोहर है। इस पुस्तक में कवि की 73 गीतिकाएँ संग्रहीत हैं। ये गीतिकाएँ अलग-अलग 60 हिंदी वर्णिक छंदों को आधार बनाकर सृजित की गई हैं।
पारंपरिक हिंदी वर्णिक छंद जो कि गणों पर आधारित होते हैं, में सृजन एक दुरूह कार्य होता है।इनके छंदों के विधान के ज्ञान के साथ-साथ पर्याप्त अभ्यास की आवश्यकता होती है। मानव जी की छंदानुगामिनी की गीतिकाओं को देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि कवि को न केवल हिन्दी वर्णिक छंदों का ज्ञान है वरन वह एक सिद्धहस्त रचनाकार हैं।
मानव जी ने अपनी गीतिकाओं में देश और समाज की वर्तमान ज्वलंत समस्याओं को चित्रित करने के साथ-साथ राष्ट्रीयता,प्रेम और सौहार्द्र ,नैतिक मूल्यों के क्षरण के प्रति चिंता व्यक्त की है।दुर्मिल सवैया में लिखित प्रथम गीतिका में उन्होंने गुरुवंदना की और उस वंदना में कवियों को एक संदेश देने का प्रयास किया है कि लेखन के लिए दूसरों को पढ़ना अति आवश्यक होता है।बिना पढ़े आप सफल लेखक/कवि नहीं बन सकते।युग्म द्रष्टव्य है-
पल भर यदि हो उपलब्ध किसी कवि को पढ़ते हम ध्यान लगा,
यह मंत्र मिला गुरु से हमको इससे बढ़कर कुछ ज्ञान नहीं ।।1/4 पृष्ठ-21
नित्य प्रति समाज में अविश्वास का माहौल बनता जा रहा है।कोई किसी पर विश्वास करने के लिए तैयार नहीं। मानव जी का मानना है कि इसके लिए बहुत हद तक टी वी के धारावाहिक जिम्मेदार हैं। टी वी के सास बहू के धारावाहिकों ने सास-बहू के बीच झगड़ा पैदा करने का काम किया है। मनहरण घनाक्षरी में रचित गीतिका का एक युग्म अवलोकनार्थ प्रस्तुत है-
फैल रहा अविश्वास, बैरी हुई बहू सास, टी वी सीरियल आज,हुए बेलगाम हैं।
रिश्तों में बढ़ी है खाई,रोज हो रही लड़ाई,गाँव गाँव गली गली ,एक थाना चाहिए।।2/4,पृष्ठ-22
भारत देश में गाय को माता मानकर उसकी पूजा की जाती है। किन्तु कुछ लोग ऐसे हैं जो अपने क्षणिक स्वार्थ के लिए गौ हत्या से परहेज़ नहीं करते । कवि की इस संबंध में चिंता उल्लेखनीय है। चामर छंद में रचित गीतिका के एक युग्म में कवि ने अपनी चिंता व्यक्त की है-
गाय के कटान को बता रहे वही सही,
स्वाद सिर्फ़ चाहिए जिन्हें जुबान के लिए।9/5 ,पृष्ठ 30
बढ़ता जल संकट आज दुनिया के लिए एक गंभीर मुद्दा है।आने वाली पीढ़ियों के लिए जल उपलब्ध रहे, इसके लिए हमें आज से ही जल को बचाने का प्रयास करना है। मानव जी ने भुजंग छंद में रचित गीतिका के एक युग्म में लोगों को आगाह करते हुए लिखा है-
बहाना नहीं है इसे व्यर्थ में, बड़ी कीमती चीज़ पानी सुनो।27/6 पृष्ठ-48
इतना ही नहीं सदानीरा नदियाँ जल संकट से जूझ रही हैं, लुप्त होने के कगार पर हैं।कवि को यह बात व्यथित करती है और वह इस समस्या को युग्म के माध्यम से पाठकों के समक्ष कुशलतापूर्वक रखता है-
थम रहीं नदियाँ कहने लगीं,गमन हेतु उन्हें जल चाहिए।57/6,पृष्ठ-79
सामाजिक विकृतियों को स्वर देते हुए कवि ने राधा छंद में लिखित गीतिका के युग्म में लिखा है-
आदमी को आदमी के प्यार से प्यारा,हो गया है आदमी का चाम देखा है।30/3 पृष्ठ 51
जाति धर्म लिंग वर्ण को भूल कर इंसान को इंसान के रूप में प्यार करने की आवश्यकता है,तभी सामाजिक समरसता को स्थापित किया जा सकता है।
आज समाज में बूढ़े माँ-बाप का तिरस्कार आम बात है। बच्चे अपने माता-पिता को घर में साथ रखने के लिए तैयार नहीं हैं। वृद्धाश्रम संस्कृति देश में सिर उठा रही है। ऐसे में मानव जी युवा पीढ़ी को एक सकारात्मक संदेश देते हुए लिखते हैं-
जिंदगी जी लो कमाने के लिए आशीष भी, तीर्थ बापू और माता को कराने के लिए।31/6 पृष्ठ-52
भारतीय संस्कृति सदैव से पारस्परिक प्रेम और भाई चारे की पोषक रही है।हम सदैव पड़ोसी से अच्छे संबंध बनाकर रखना चाहते हैं।इन्हीं भावों का पल्लवन करते हुए कवि ने पंचचामर छंद में रची गई गीतिका के युग्म में लिखा है-
न लक्ष्य जीत का कभी रहा न हार चाहिए।
पड़ोस से सदैव प्यार, मात्र प्यार चाहिए।।39/1 पृष्ठ-61
‘कर्म प्रधान विश्व रचि राखा’ की अवधारणा को पुष्ट करते हुए ‘मानव’ जी ने सभी को कर्म के प्रति प्रेरित करते हुए लिखा है-
वे जीत नहीं पाते,जो वक्त गंवाते हैं।42/6, पृष्ठ-64
समय की महत्ता को पहचानने की आवश्यकता है।व्यर्थ में समय गँवाने से व्यक्ति को जीवन में कुछ भी हासिल नहीं होता।
आज जब समूचा विश्व योग की महत्ता को स्वीकार कर उसे जीवन में अपनाने पर बल देता रहा है तो कवि भला कैसे पीछे रह सकता है।मानव जी ने योग और सदाचार को स्वस्थ और नीरोगी जीवन के लिये आवश्यक बताते हुए लिखा है-
रोग घटे जोश बढ़े, योग सदाचार चुनो।48/4, पृष्ठ-70
किसी भी देश के विकास में युवा वर्ग का अहम योगदान होता है।यदि युवा पीढ़ी कर्तव्य च्युत हो जाती है तो देश उन्नति नहीं कर सकता। कवि इस तथ्य से भलीभांति परिचित है।युवा वर्ग को इस बात का अहसास कराते हुए शैल छंद में रचित गीतिका के युग्म में लिखा है-
तरक्की करेगा वही देश आज, जवानी करेगी जहाँ योगदान।55/4, पृष्ठ-77
पाश्चात्य संस्कृति जिस प्रकार हमारे खान-पान और पहनावे को प्रभावित कर रही है वह हमारेलिए चिंता का सबब है। मानव जी ने अपनी गीतिका के युग्म के माध्यम से इस अपसंस्कृति को व्यक्त किया है-
बढ़ी है या घटी शान,छोटे हुए परिधान,फटे हुए कपड़ों का,फैशन भी आम है,
लाज अनमोल जान,अपने को पहचान,बहू-बेटियों को कुछ शर्माना चाहिए।2/5 ,पृष्ठ-22
निज लाज थी पहचान औरत की जहाँ, घटने लगे तन से वहाँ परिधान हैं ।61/5 पृष्ठ-83
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम जो हमारी अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं।वे धीरे-धीरे बंद हो रहे हैं।इससे वर्ग वैषम्य पनप रहा है। कवि बंद हो रहे उद्योग धंधों को सरकारी नीतियों का परिणाम मानता है।
नित्य उद्योग क्यों, हो रहा बंद है।21/5,पृष्ठ-42
उल्टी-सीधी नीति,असर देखे हैं ऐसे, उद्योगों के द्वार, लटकते देखा ताला।60/6 पृष्ठ-82
देश की सीमाओं के प्रहरी प्रतिकूलताओं से जूझते हुए माँ भारती की रक्षा करते हैं ,कवि गंगोदक छंद में रचित गीतिका में इसका उल्लेख करते हुए उनके प्रति श्रद्धानत होते हुए युग्म में लिखता है-
गर्म हो सर्द हो तान सीना खड़े, जो सुरक्षा हमें दे रहे शान से,
मैं उन्हीं सैनिकों की लिखूँ शान में,और गाता रहूँ काव्य के रूप में।67/3, पृष्ठ -89
उर्वर भावभूमि पर रची गई गीतिकाओं के लिए मनोज मानव जी ने हिंदी भाषा का प्रयोग किया है किंतु छंद के निर्वहन के लिए निस्संकोच रूप में, जहाँ आवश्यक हुआ है, अंग्रेज़ी और उर्दू के आम-जन में प्रचलित शब्दों के माध्यम से भावाभिव्यक्ति की है। इससे गीतिकाएँ सहज और बोधगम्य हो गई हैं।हिंदी छंदानुरागियों के लिए यह पुस्तक एक वरदान से कम नहीं है। मैं संग्रहणीय और पठनीय कृति छंदानुगामिनी के कृतिकार मनोज मानव जी को इस महनीय कार्य के लिए अपनी हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ और आशा करता हूँ कि हिंदी साहित्य जगत में पुस्तक को विशिष्ट स्थान अवश्य प्राप्त होगा।
डाॅ बिपिन पाण्डेय
रुड़की