छंदमुक्त रचना
हमारी सोच में केवल इतना अन्तर है
तुम्हारी नज़र में इश्क़ एक एहसास है
और मेरे लिए सिर्फ़ सर्वनाश
फिर भी चाहता था तुम्हे अपनी जान से बढ़ कर
मगर तुमने क्या किया
मेरे फूल से दिल पर पत्थर चला दिया।
कुचल दिया अरमानों के उस हरे भरे बाग को जहां तुम्हारी चाहत के फूल खिलते थे
कब क्या बचा है सिर्फ़ तन्हाई
ज़माने भर की रुसवाई
लेकिन तुम क्या समझोगे
तुम्हें तो क़द्र ही नहीं है मेरे अनमोल चाहतों की
तुम तो दौलत की पुजारन हो
किसी ग़रीब की मुहब्बत की क्या क़द्र
लेकिन अभी नहीं
किसी दिन तुम मुझे ज़रूर याद करोगी जब तुम्हारे रूप का सागर सूख जाएगा
जब कोई पंक्षी तुम्हारे सूखे घडे के पास नहीं आएगा
जिस पर तुम्हें इतना घमंड है
तब तुम रोओगी
तड़पोगी और तुम्हारी तरफ़ कोई देखेगा भी नहीं
उस वक़्त फिर मेरी मुहब्बत तुम्हें आवाज़ देगी जिसने तुम्हारी सूरत नहीं आत्मा से प्यार किया था
तुम चले आना सदा सदा के लिए मेरे पास
प्रीतम राठौर भिनगाई