छंदमुक्त काव्य?
छंदमुक्त काव्य?
छंदमुक्त काव्य हास्य प्राणहीन देह है।
रो रहे कबीर आदि काव्य शून्य गेह है।
गेयता सड़ी गली अहं शिला सपाट है।
नोचता बकोटता स्वयं मरा ललाट है।
आत्म शून्य ज्ञानहीन धर्म शून्य भावना।
प्रेत रूप काम क्रोध लोभ मोह वासना।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।