चढ़कर न उतरी इश्क़ खुमारी
चढ़कर ना उतरी इश्क खुमारी और रात बाकी है
बदकिस्मती ले पैदा हुआ किस्मत में बात बाकी है
साँस थमने लगी दिल की रफ़्तार बढ़ गई देख उसे
लबें बुलबुल भीगे लिए हुए और ये बरसात बाकी है
सोचा ना था कभी गुनाह इश्क कर बैठेंगे एक बार
नाचार निग़ाहों को इन्तजार एक मुलाकात बाकी है
कायनात बन के सोये हुए अरमान दिल में जगा गई
ख़्वाब दिल ने देख थे उसके और ख्यालात बाकी है
जिंदगी के तन्हा सफर में कब तक हो तेरा इन्तजार
मत कहना अशोक की अभी तो कायनात बाक़ी है
अशोक सपड़ा की कलम से दिल्ली से