चौराहे पर खड़ा पीपल
रण क्षेत्र तैयार है बिगुल है बज उठी,
चौराहे पर खड़ा पीपल बस मूक है देखता हुआ।
रोज बदलते चेहरे हो या वक्त, सब को बेसब्री से
चौराहे पर खड़ा पीपल बस मूक है देखता हुआ।
अनगिनत पथ से भीड़ है उमड़ी हुई,
पता किसी को नहीं कि बात क्या है घुमड़ी हुई।
चौराहे पर खड़ा पीपल बस मूक है देखता हुआ।
शायद आज यहाँ रक्त का दरिया बहेगा,
बिना कुछ कहे आज कोई नहीं रहेगा।
बाँटने वाले सब कुछ बाँटा पर बाँटा नहीं है भूख को,
हस्ती मिट गई पर भुला नहीं अपने रसूख को।
चौराहे पर खड़ा पीपल बस मूक है देखता हुआ।
सभी राहगीर बड़ी शिद्दत से इसके छाँव तले बैठे,
कोई निकला मंज़िल की और कोई पीछे छुटे।
हर्ष और विषाद का हर चेहरे पर है कोई ना कोई कहानी,
पर पीपल जानता है कि कौन है कितने पानी।
चौराहे पर खड़ा पीपल बस मूक है देखता हुआ।
सदियों से खड़ा यह दशकों को बदलते देखा है,
जज्बाते इंसा ने इससे वफ़ाएं उल्फत सीखा है।
मौसम की हर हरकत को इसने मचलते देखा है,
पगडंडी पर भी अहले मस्त को संभलते देखा है।
चौराहे पर खड़ा पीपल बस मूक है देखता हुआ।
हर डाल पर कुछ पंछी बैठा हर साल पर है इंसा की नज़रें,
मुसाफिर पल में भूल गया पर इसको सदियों तक की खबरें।
चौराहे पर खड़ा पीपल बस मूक है देखता हुआ।
चौराहे पर खड़ा पीपल बस मूक है देखता हुआ।।