चौराहें की पुकार!
शीर्षक – चौराहें की पुकार!
विधा – कविता
परिचय – ज्ञानीचोर
शोधार्थी व कवि साहित्यकार
मु.पो. रघुनाथगढ़, सीकर राज.
पिन 332027
मो. 9001321438
मैं पुकारता गया हर चौराहें को
धूल से सनी चौड़ी सड़के भी।
फैली किसी राक्षस जिह्वा सी
पुकारता रहा सुनसान फिजा को।
आदमी न थे यहाँ रास्ते पर
सिर्फ बेडोल मूर्ख मूर्तियों बीच
दौड़ थी अंधे समाज की
मोहल्लें में राजनीति शह
मार देती प्यादे से सरल को।
पुकार रहा इन पुरानी दिवारों को
निकले कोई छुपी आत्मा के स्वर
शायद! बोल पड़े अतीत खंडहर
दफन हुए राज जिंदा हो जाये
पर! आदमी की जुबान पर ही,
नहीं है पहरा,आत्मा भी कैद है।
पुकार प्रतिध्वनि लौट आती फिर
राजनीति के गंदे शिखर से टकराकर
काट डाला शीश द्रोण का द्रुपद सुत ने
नहीं नहीं नहीं! ये वो राजनीति थी
जिसने झौंक दी कोख के उपजे हीरें!
चिंतित पुकार लिए फिर रहा हूँ युगों से
पर उद्धार कब हुआ है अश्वत्थामा का!
मन के कोने खाली है द्वापरयुग से
कैद है आत्मा आदमी के कपट में
जादूगर है हर कोई बस रंगमंच अलग है।