चौबे जी घर सोहरे
चौबे जी घर सोहरे, ठुमक पड़ोसन गाय ।
टेर बुलौआ शाम सै, देत खबासन आय ।।
देत खबासन आय, आँगना बजै ढुलकिया ।
मन फिरकैंया लेय, नचै फिर टेकत लठिया ।।
कह दीपक कविराय, मुदित मन ख़ुश रोवै जी ।
फूल बहेरो आज, उमर निकरौ चौबे जी ।।
चौबे जी घर सोहरे, ठुमक पड़ोसन गाय ।
टेर बुलौआ शाम सै, देत खबासन आय ।।
देत खबासन आय, आँगना बजै ढुलकिया ।
मन फिरकैंया लेय, नचै फिर टेकत लठिया ।।
कह दीपक कविराय, मुदित मन ख़ुश रोवै जी ।
फूल बहेरो आज, उमर निकरौ चौबे जी ।।