चौपाल
चौपाल
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वो जमाना कुछ और है
आज तो चौपाल
सिर्फ़ किस्से कहानियों की बातें हैं
चौपालों का अपना भी
कभी खूब भौकाल था,
तब लगभग रोज
चौपाल सजती थी
बड़े बुजुर्गों की जमघट होती थी।
हँसी ठिठोली भी खूब होती थी।
शाम हुई नहीं कि
चौपालें सज जाती थी
आपस में दुःख, सुख,
खेती किसानी ,घर परिवार की
बातें भी खूब होती थीं।
गाँव घर के विवादों का
चौपालें समाधान होती थीं।
चौपालों के निर्णय
सर्वमान्य होते थे,
क्योंकि तब बुजुर्गों के
बड़े सम्मान होते थे।
मनमुटाव भी कम होते थे,
क्योंकि चौपालें भाईचारे का
खूबसूरत मरहम होते थे।
आज चौपालें दम तोड़ चुकी हैं,
इसलिए समाज में
आपसी भाईचारा, अपनेपन और
अपने बड़ों के प्रति सम्मान की
हर ओर कमी हो गई है।
✍सुधीर श्रीवास्तव