चौपाई (राजनीति आज की)
राजनीति (आज की)
_______________________
धन चाहो बनना जननायक।
राजनीति अब है सुखदायक।।
जो जन गिरगिट सम बन जाता।
राजनीति में नाम कमाता।।
दोष सभी क्षण में हर लेती।
धन से यह झोली भर देती।।
राजनीति कर मिटै कलेशा।
चढ़ जन के सर बनो गणेशा।।
जन बल धन की एक हि दाता।
राजनीति है भाग्य विधाता।।
राजनीत में जो जन आवे।
बिन मांगे ही सबकुछ पावे।।
पढ़ें लिखे का काम नहीं है।
निपढ़ यहाँ अब आम नहीं है।।
गुण्डा ठग अरु चोर लुटेरा।
सबका ही बस यहीं बसेरा।।
बढचढ कर जो बोले भाषा।
राजनीति की वह परिभाषा।।
चतुर लोमड़ी गीदड़ भालू।
राजनीति उनकी जो चालू।।
मुख में राम बगल मे छूरी।
सत् पथ से रखते जो दूरी।।
राजनीति उनको अपनाती।
जग में यह सम्मान दिलाती।।
श्वेत वस्त्र अरु मन हो काला।
पल – पल में जो बदले पाला।।
गिरगिट सम जो रंग बदलता।
राजनीति में वह जन चलता।।
✍️पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’