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22 Jul 2021 · 4 min read

चौपाई छंद

#चौपाई सममात्रिक छंद है।
इसमें चार चरण होते हैं।
प्रत्येक चरण में १६,१६ मात्राएँ होती हैं। चरणान्त २२ से ,
२२ के विकल्प में ११२, २११,११११ भी अधिमान्य‌ है।

पदों के किसी चरणान्त में तगण (२२१), रगण (२१२), जगण ( १२१) वर्जित हैं

कल संयोजन का ध्यान रखें।
(‌सामान्यतया कल संयोजन तो प्रत्येक मात्रिक छंद में होना चाहिए , कल संयोजन ही लय बनाता है )

चौपाई छंद

जीव जगत देखा संसारी | ढोता बोझा सिर पर भारी ||
कठपुतली सा आकर नाचे | कभी प्रशंसा कभी तमाचे ||

लोभी धन का ढेर लगाता | पास नहीं संतोषी माता ||
हाय-हाय में खुद ही पड़ता || दोष सुभाषा सिर पर मढ़ता ||

कहीं -कहीं नगदी में खपता | कभी उधारी करके लुटता ||
कभी सृजन ‌हो जाता भारी | कहीं सृजन. में बंटाधारी ||

ग्रीष्म ताप को चढ़े जवानी |‌ बादल बने प्यार का दानी |
रोम-रोम में खिले कहानी | बरसे जब भी पहला पानी |
============================
एक नया प्रयोग , विशेष निवेदन –
चक्र चौपाई (इस नामकरण के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ )
यह चौपाई ही है , चक्र इसलिए नाम दिया है कि चौपाई का प्रथम शब्द, अंत में लाया गया है , व चौपाई के प्रथम चरण का भाव , , चौथे चरण में समर्थन करता है

बीती बातें वह सब भूला | नहीं द्वंद का मन में झूला ||
साधु जनों की सुंदर नीती | रखें न बातें वह कटु बीती ||

तेरी बातें साधु सुहानी | वचन सरस युत सभी कहानी ||
खुली आज है प्रज्ञा मेरी | न्यारी बातें सब कुछ तेरी ||

कीन्ही गलती और न मानी | नादानी पर है नादानी ||
बोल वचन भी कटुता दीन्हा | यहाँ गुना दस.गलती कीन्हा ||

जिसके जैसे भाव सयाना | बैसे उसके दिखें तराना ||
मीठे नीम न होते उसके | कड़वे बोल रहे हैं जिसके ||

====================≠===============
मुक्तक -, चौपाई छंद आधारित 32 मात्रा भार से

जीव जगत देखा संसारी , ढोता बोझा सिर पर भारी |
करता है जब- जब मक्कारी , रोती किस्मत तब बेचारी |
कठपुतली सा आकर नाचे , कभी प्रशंसा कभी तमाचे ~
करता रहता मारा मारी‌, बने झूठ का वह अवतारी |

लोभी धन का ढेर लगाता , पास नहीं संतोषी माता |
हाय -हाय का गाना गाता , छल विद्या हरदम अपनाता |
हर पचड़े में खुद ही पड़ता , दोष सुभाषा सिर पर मढ़ता~
यत्र -तत्र सबको भरमाता सत्य हमेशा वह झुठलाता |

सभी जगह पर कपटी खपता , एक दिवस देखा है लुटता |
भरी सभा में खटपट करता , कभी कभी देखा है पिटता |
नहीं सृजन ‌वह करता भारी , कर्म सदा है बंटाधारी ~
दाल -भात में मूसल बनता , रंग एक दिन उसका छुटता |

उसको जानो सही जवानी , बादल जैसा हो यदि दानी |
रोम-रोम में खिले कहानी , बरसे जब भी पहला पानी |
आवाहन सब कोई माने , उसको हितकर अपना जाने ~
दुनिया में है रीत सुुहानी , वही सफल हो जिसने ठानी |

================================

मुक्तक -चौपाई छंद आधारित मात्रा भार 16 से

ग्रीष्म ताप को चढ़े जवानी |
बादल बनता है तब. दानी |
रोम-रोम भी खिल उठता है ~
बरसे जब भी पहला पानी |

धन बैभव का ढ़ेर लगाता |
पास नहीं संतोषी माता |
हाय-हाय. में खुद ही पड़ता –
दोष दूसरो के ‌ है‌‌ गाता |

जीव जगत देखा संसारी |
ढोता बोझा सिर पर भारी |
कठपुतली सा आकर. नाचे |~
बन जाता है कभी मदारी ||

=========================
चौपाई छंद आधारित गीतिका

जीव जगत देखा संसारी , ढोता बोझा सिर पर भारी |
करता है जब- जब मक्कारी , रोती किस्मत तब बेचारी |

कठपुतली सा आकर नाचे , कभी प्रशंसा कभी तमाचे ,
करता रहता मारा मारी‌, बने झूठ का वह अवतारी |

लोभी धन का ढेर लगाता , पास नहीं संतोषी माता ,
हाय -हाय की करे सवारी , छल -विद्या का हो संघारी |

हर पचड़े में चमचा पड़ता , दोष सुभाषा सिर पर मढ़ता,
नहीं सृजन करता तैयारी , कर्म सदा है बंटाधारी |

सभी जगह पर कपटी खपता , भरी सभा में खटपट करता ,
दिखलाता जहाँ कलाकारी , जुड़ जाते है अत्याचारी |

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चौपाई आधारित गीत

जीव जगत देखा संसारी , ढोता बोझा सिर पर भारी |मुखड़ा
होती है जब-जब मक्कारी , रोती किस्मत तब बेचारी ||टेक

लोभी धन का ढेर लगाता , पास नहीं संतोषी माता |अंतरा
हाय -हाय का गाना गाता , छल विद्या हरदम अपनाता ||
करता रहता मारा मारी‌, बने झूठ का वह अवतारी | पूरक
होती है जब-जब मक्कारी , रोती किस्मत तब बेचारी || टेक

सभी जगह पर कपटी खपता , एक दिवस देखा है लुटता |अंतरा
भरी सभा में खटपट करता , कभी कभी देखा है पिटता ||
नहीं सृजन ‌वह करता भारी , कर्म सदा हैं बंटाधारी |पूरक
होती है जब -जब मक्कारी , रोती किस्मत तब बेचारी || |टेक

हर पचड़े में जो भी पड़ता , दोष सुभाषा सिर पर मढ़ता |अंतरा
यत्र -तत्र सबको भरमाता , सत्य हमेशा वह झुठलाता ||
दाल -भात सी हिस्सेदारी , मूसल जैसी है रँगदारी |पूरक
होती है जब -जब मक्कारी , रोती किस्मत तब बेचारी || टेक

उसको जानो सही जवानी , बादल जैसा हो यदि दानी | अंतरा
रोम-रोम में खिले कहानी , बरसे जब भी पहला पानी |
खिलती खुश्बू की फुलवारी, लगती‌‌ सबको वह हितकारी | पूरक
होती है जब-जब मक्कारी , रोती किस्मत तब बेचारी || टेक
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-©सुभाष सिंघई
एम•ए• हिंदी साहित्य ,दर्शन शास्त्र
आलेख- सरल सहज भाव शब्दों से छंद को समझानें का प्रयास किया है , वर्तनी व कहीं मात्रा दोष, व अन्य विधान सम्मत दोष हो तो परिमार्जन करके ग्राह करें |
सादर

Language: Hindi
Tag: गीत
818 Views
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