चौपाई छंद – बुद्धि
बड़े बड़े हैं बुद्धि प्रदाता।
हमको समझ कहाँ कुछ आता।।
गणपति लीला जिसने जानी।
कहलाता वो ही है ज्ञानी।।
अज्ञानी मैं तुम मम स्वामी।
मुझको तारो हे अंतर्यामी।।
तेरे चरण शरण तब आया।
जब सारे जग ने ठुकराया।।
रिद्धि सिद्धि के तुम हो स्वामी।
शिव गौरी सुत हो बहु नामी।।
पूजन प्रथम तुम्हारी होती।
सफल काज मिलते हैं मोती।।
बुद्धि प्रदाता तुमको मानें।
गणपति हम तुमको अब जाने।।
विद्या बल विवेक के दाता।
तुमसे है हर जन का नाता।
बुद्धि हीन हैं हम बहु स्वामी।
लोभी दुष्ट प्रपंची कामी।।
गणपति बेड़ा पार लगाओ।
भव सागर से पार कराओ।।
बुद्धिहीन नर पशु कहलाता।
जग में मान कभी नहिं पाता।।
बुद्धि विवेकी जिसका नाता।
वो सम्मान सदा जग पाता।।
सुधीर श्रीवास्तव