चौपाई छंद आधारित मुक्तक
विधा-मुक्तक
आधार छंद-चउपाई
कवनो नाहीं चली बहाना।
लागल रहि ई जाना आना।
लाख उधापन कऽ लऽ भाई-
साथ न जाई माल खजाना।
जीवन अउर मरण के खेला।
मानव मूरख निपट अकेला।
हाय-हाय बेकार करेलऽ-
साथे नाहीं जाई ढेला।
नवका युग के मेहरि आइल।
जिंस टाप में मन अझुराइल।
माई कपड़ा बरतन धोवे-
ठेहुन में के दरद भुलाइल।
स्वाभिमान पर जे मरि जाला।
बोस, भगत,आजाद कहाला।
देशभक्त वीरन के फोटो-
गरदन में जग पहिने माला।
साजन के बिन सावन कइसन।
तुलसी के बिन आँगन कइसन।
रो-रो आज कहेली राधा-
कान्हा के बिन मधुबन कइसन।
फुसुर फुसुर बतिआवेला जे।
गावल गीत सुनावेला जे।
मेहरि मउगा नाम धराइल-
दुनू हाथ चमकावेला जे।
धोती खोल क फेटा बान्हल।
पगहा खोल क पाड़ी छानल।
कोशिश लाख करऽ तू भाई-
मनबढ़ मूरख सत्य न जानल।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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