चौथापन
एक हुआ और दौर खत्म, चलो हिसाब करें।
ये था तीसरा तो क्या, चौथे का आगाज करें।।
एक दौर सहारे का था, एक में सहारा हम थे।
एक दौर प्यार का था, जिसका किनारा हम थे।।
है तेज कितने गुजरे, ये तीनों दौर यारों।
है याद में बस आती, यारों का प्यार यारों।
है एहसास कितना कातिल, ये दौरे जहां चौथा।
कर कुछ नही पाएंगे,बस ताकना पन है चौथा।।
बस बोलते रहेंगे हम, हमको सुनेगा कौन क्यों।
सब देख जान कर भी, हम देखेंगे नहीं चौथा।।
हम सोच रहे ‘संजय’, कि एक ऐसा कारवां बनाए।
मन को ही वन बनाए, और वनवास चले जाए।।
जय हिंद