चौखट पर जलता दिया और यामिनी, अपलक निहार रहे हैं
चौखट पर जलता दिया और यामिनी, अपलक निहार रहे हैं
मेरी ओर,जानना चाहते हैं ,अंतर्मन की उदारता को
अवगत होना चाहते है सब,मेरी उधेड़बुन से,वो अनकही हृदय की वेदनाएं!
यामिनी देना चाहती है ,उपहार सुखद नींद का, उन्मुक्त पवन भी प्रयासरत है
करने में मेरी एकांत को भंग, पर सब असफल है ,शब्द समिधा धुइहर है,भाव कुछ सीले से है ,करना नहीं चाहते
अधर की दहलीज को पार, अव्यवस्थित विचारों का विन्यास
कर रहा है द्वंद ,विश्वास की डगमगाती नीव से
मौन कर रहा है अट्टहास ,स्वयं की जीत पर !
कई बार आप कहना बहुत कुछ चाहते हैं किंतु भावनाओं को व्यक्त करने में स्वयं को असमर्थ पाते हैं,🤐
और अंत में….. मौन जीत जाता है!