भाव
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एक नाव हो भाव की, लय-सुर की पतवार।
फिर कुछ ऐसा हम लिखें, जिसमें जीवन धार।। १
जैसा मन में भाव हो, वैसा ही लिख पाय।
भाव सभी मोती बने. कागज पर झड़ जाय।। २
बंद पड़े हैं भाव सब, कलम हुई खामोश।
ऐसे उलझन में पड़ी, खोया अपना होश।।३
हे वाणी वरदायिनी, विनय करूँ कर जोर।
नवल शब्द नव भाव दे, पढ़कर सभी विभोर ।।४
प्रबल भाव आवेग से , मचा रहें हैं शोर।
खुद मुखरित होने लगे, अंतस को झकझोर।।५
अंतस को झकझोरते, आते-जाते भाव।
दर्द बहुत देते मुझे, दिखे नहीं पर घाव।। ६
युवा वर्ग में भर रहा, असंतोष का भाव।
धर्म-कर्म को त्याग कर, दिशा हीन भटकाव।। ७
दुख के आँचल में छिपा, सभी सुखों का सार।
सघन सजल सब भावना, है जिसका आधार।।८
मचल रहे उर भावना, कितने कोमल कांत।
लगे मधुर मादक लहर, पुलक रहा मन भ्रांत।। ९
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली