चोरी
मेरी,भी एक चोरी हुई,
बहुत नही,थोडी हुई,
रहते थे,हम आर्यनगर,
बच्चे,पढते थे शहर,
गये गांव,थे हम अपने,
कल्पना नही कि थी,चोरी कि सपने में
लौटे तो,देखा चोरी हो गयी,
चोरी हुआ गैस सिलेण्डर,और रेगुलेटर,
कुछ नकदी, कुछ बर्तन,व प्रेसर कुकर,
नाग देवता, को साथ लेकर,
मेरे ही बैग में वह भर कर
हो गये वह रफु चक्कर,
ऐसी मेरी चोरी हो गयी,
कमरे का हाल कैसे बयां करुं,
बिखरा था सामान,कहाँ पांव धरुं,
बच्चे सहमे सहमे से,पत्नी थी हतप्रभ,
मै भी,विस्मृत सा,अब क्या करुं,
गया पडोश मे यह कहने को,
मेरे घर में,चोरी हो गयी,
कछ पडोषी,और ईष्ट मित्र,
हो गये,घर में मेरे एकत्र,
फिर गये हम मिल कर चौकी पर,
कहा,साहब,चोरी हो गयी,
दरोगा बोले यह क्या कहते हो,
यहाँ,कहाँ पर तुम रहते हो,
कब कहाँ,और कैसे हो गयी,
क्यों,नही थे तुम घर पर,
बतला के नही गये ,तुम हमें,व पडोष पर,
और ,अब कहते हो,चोरी हो गयी,
मैने कहा,जी हाँ,चोरी हो गयी,
बहुत नही,पर थोडी सी हो गयी,
हम गये थे गांव अपने में,
नही सोचा था यह सपने में
लौट के आये,तो देखा,
चोरी हो गयी, रपट लिख लो दरोगा जी,
मेरी भी, एक चोरी हो गयी।