चोट शब्दों की ना सही जाए
चोट शब्दों की ना सही जाए
बात आँखों से तब कही जाए
हो ख़ता तीर तो न ग़म कीजै
है मज़ा तीर जब सही जाए
अश्क़ इतने भरे हैं नैनों में
इक नदी जैसे के बही जाए
चोट शब्दों की ना सही जाए
बात आँखों से तब कही जाए
हो ख़ता तीर तो न ग़म कीजै
है मज़ा तीर जब सही जाए
अश्क़ इतने भरे हैं नैनों में
इक नदी जैसे के बही जाए