चोट खाये हुए मज़दूर घर को लौट आये मज़दूर
चोट खाये हुए मज़दूर घर को लौट आये मज़दूर
चिलचिलाती धूप से कहां,कब घबराये मज़दूर
रोटी की तलाश में घर बचाने की आस में
थोड़ा सा घबराये मज़दूर देखो गांव को लौट आये मज़दूर
शहरी जीवन मात्र छलावा था नेताओं का दिखावा था
भूखे,प्यासे रहकर ही गांव को लौट आये मज़दूर
जिनहोने मजदूरों के वोटों पर सत्ता संभाली थी
आत्मनिर्भर होने की परिभाषा उन व्याभिचारियो ने बना डाली थी
जो वर्ग आज तक इतिहास बनाता था
वो मार्ग मजदूरों के रक्त से होकर जाता था
भूपेंद्र रावत
22।05।2020