चैनों अमन की बाते अब कौन करता?
चैनों-अमन की बातें अब कौन करता?
उसे तो उल-जलूल सा लगता
हमदर्द अब रह गए ही कितने?
क्या कहे “किशन” हर कोई झूठी आहे भरता.
जमाना भी खुदगर्ज़ कितना हो गया?
भाई-भाई का ना रहा
ख़ुदा को भी आती हंसी हमपे
मौकापरस्ती में इतना जो फ़ितरतमंद हुआ.
कोई किसी की फरियाद ना सुनता
कौन भला, वेबक्त किसे याद करता?
अपनेपन की सिश्कियाँ दफ़न सी हो गयी.
इंसानियत की बात तो, अब बेमानी सी लगने लगी.
शायर-किशन कारीगर
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