चैत्र प्रतिपदा
चैत्र प्रतिपदा फिर आई है ।
धरा फूली नही समाई है ।
झूम उठीं फसलें सब ,
अमियाँ भी बौराई है ।
सोर भृमण पूर्ण फिर
वसुंधरा कर आई है ।
घटती उम्रों के सँग ,
तरुणाई ली अँगड़ाई है ।
आर्यवर्त की समृद्ध परंपरा ,
याद आज हमे फिर आई है ।
नव वर्ष संवत २०७५
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की शुभकामनाऐं
…. विवेक दुबे”निश्चल”@…