चेहरे
एक ही शख्स जीवन में कई चेहरे लिए जीता है पर हर चेहरे से दूसरों को लालायित करने की कोशिश में वो स्वयं को मिटा देता है।वास्तव में चेहरा कोई भी हो उसकी भव्यता सादगी व शालीनता हर तरफ नहीं दिख पाती हैं प्रेम कोई संचय की वस्तु नहीं जहां किसी में भलमानसी दिखाई पड़े उसी की ओर आतुर हो चले पर भलमानसता जीवन का एक प्रकार्य है जो अंग अंग में जान फूंक देता है सब स्वंय उस ओर आकृष्ट हो उठते हैं बिना किसी कारीगरी के
पर आजकल लोग डंक फंद व चातुर्यता या कुटिल कारीगरी से ऐसा आवरण ओढ़ लेते हैं और दूसरे को आत्मसात् कर लेने की अजब विद्या जानते हैं बेचारा सरल व्यक्तित्व इस कर्म के मर्म में लिपटा जाता है और
फिर आजीवन स्वयं की पहचान तलाश्ता रहता है मेरी दृष्टि में ये
औत्सुक्य जीवन भर का झमेला है किंतु अच्छाआचरण ऐसे प्रकरण से दूरी ही रखता है फिर चेहरा चाहे कोई हो कोई असर नहीं।व्यक्ति मन यायावर है उसे नित् नवीनता चाहिए कुछ अलग सा अपितु वो आज अनेक चेहरे ओढ़े जीता है ।
और सामने वाले को छल से दबा लेता है पर सरल जीव न मरता है न जीता है वस जीवन को नियति मान स्वयं की नैया ठेलता रहता है
कुत्सित व्यक्ति प्रेम के मायने क्या जाने
उसका प्रयोजन तो दूसरे को व्यथित करना है पल भर में ज़रा से
फायदे हेतु वो दुःख पहुंचाने में नही हिचकता पर वो तो इसी के आनंद में सराबोर रहता है।ऐसा आनंद जिससे किसी दूसरे को मानसिक क्षति हो
कोई फायदा नहीं छवि ऐसी हो कि मन बरबस श्रद्धेय के द्वार की ओर दौड़े।
मनोज शर्मा