चेहरे पे चेहरा (ग़ज़ल – विनीत सिंह शायर)
आँखों पे अपनी ज़ुल्फ का पहरा लगाए हैं
इस दिल पे मेरे घाव जो गहरा लगाए हैं
ग़म भरी आँखों पे उनकी हँसी है क़ायम
जैसे चेहरे पे एक और चेहरा लगाए हैं
आएँ तो बज़्म में वो पर साथ भाइयों के
जैसे कली के ऊपर भँवरा लगाए हैं
महफ़िल महक उठी है कमाल उसिका है
बालों में जो अपनी वो गजरा लगाए हैं
दुल्हन की रज़ा भी तो पूछ ले जाकर वो
पेशानी पे अपनी जो सेहरा लगाए हैं
~विनीत सिंह
Vinit Singh Shayar