चेहरा
चेहरा
चेहरे की आवाज़,
गहरी है आग़ाज़
बुन रहें हैं छुप छुपा के,
बजा देता है वह साज !
ऑखें और मुस्कान के,
अलग अलग आलाप
बयां कर देते हैं
कुछ और ही है बात !
ज्ञान कर्म तन्त्र रचित,
अगम सुगम जाल
बुन ही जाता है
भृकुटि आरोहित जाल !
लाल गुलाबी पुते,
चेहरे का क़ुदरती गुलाल
बयां कर ही देता है,
दिल लाल है या गुलाब !
नरेन्द्र