*चेहरा क्यों लटका है*
चेहरा क्यों लटका है
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क्यों अंधेरा पसरा है,
चेहरा क्यों लटका है।
रंग ए नूर उतरा-उतरा,
कोई गम या दुखड़ा है।
कुदरत की माया देखो,
धुंध मे सूर्य निकला है।
कोइ समझ नहीं लया,
ये गौरी का नखरा है।
जैसे उलझा कोई पथ,
टेढ़ा – मेढा मसला है।
रंग-ढंग भंग मनसीरत,
नैनों में भारी असला है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)