चेतना को हर उम्र में जिन्दा रखो
चेतना को हर उम्र में जाग्रत रखें
बीमारी पीड़ा और समझ दोनों साथ देकर जाती है। पिछले दिनों हमने जो कठिन समय देखा, उसमें एक बात तो समझ में आ गई कि जीवन में स्थायित्व का समय अब चला गया। हमारी भारतीय जीवनशैली इस तरह की थी कि नौकरी पेशा लोग नौकरी करते, फिर सेवानिवृत्त होते और पेंशन शुरू हो जाती व्यापारी लोग उम्र ढलने के साथ कारोबार बच्चों को सौंप देते और बुढ़ापा आराम से अपने हिसाब से गुजारते। इस सबमें एक स्थायित्व होता था। लेकिन, अब समय बदल चुका है। अब स्थायित्व का नहीं, संतुलन का दौर आ गया है। हमें अपनी उम्र की सक्रियता के साथ संतुलन रखना पड़ेगा। बीमारी भले ही एक थी, लेकिन अपने पीछे और कई रोग छोड़ गई। आँकड़े बताते हैं दुनिया में जो तीस नगर अधिक प्रदूषित माने गए, उनमें 21 अकेले भारत में ही हैं। सत्रह लाख लोग हर साल प्रदूषण के कारण मर जाते हैं। ये समस्याएं और विकराल रूप लेने वाली हैं। कई बीमारियों को तो हमने स्वयं ही घर आने का आमंत्रण दिया है। इसलिए अब शरीर को बहुत सावधानी से बचाकर चलना पड़ेगा। देह की तो मजबूरी है कि बूढ़ा होना है, लेकिन चेतना को बूढ़ी मत होने दीजिए। यह अवसर है जब अपनी चेतना को हर उम्र में जाग्रत रखें। जीवन में अब जो बीमारियाँ आने वाली हैं उनके लिए किसी ने ठीक ही कहा है दर्द का इलाज देखिए, हसरतों से परहेज बताया है।