चूहा, हाथी और दुल्हन (बाल-कविता)
चूहा, हाथी और दुल्हन (बाल-कविता)
******************************
एक रोज चूहे राजा के दिल नें बात समाई,
अब तो मैं भी जवां हो गया कर लूं एक सगाई.
सोच-विचार गए चूहे जी हाथी भाई के घर,
भैया मेरा ब्याह रचा दो ना भूलूंगा जीवन भर.
हाथी बोला तब चूहे से- देखो चूहे भाई,
जिसने कर ली अपनी शादी उसकी शामत आयी.
चूहा बोला- मुझको अपना मीत समझ कर बोलो,
अच्छी सी इक दुल्हन लाकर रस मेरे जीवन में घोलो.
कई बार हाथी भाई ने चूहे को समझाया,
पर हाथी की बात को चूहा फिर भी समझ न पाया.
चूहे भाई ने हाथी की बात नही जब मानी,
उसको सबक सिखाने की हाथी ने मन में ठानी.
बोला, भाई चलो ठीक है तुम बारात सजाओ,
मैं दुल्हन को अभी सजाऊँ तुम दूल्हा बन कर आओ.
धूम-धड़ाके से पहुंची दुल्हन के घर बारात,
तब चूहे ने बड़े अकड़ कर कही जोर से अपनी बात.
भइया ! शादी से पहले मैं दुल्हन को देखूंगा,
जब मेरे मन को भायेगी तब ही ब्याह करूंगा.
तब चूहे जी बड़ी रौब से पास गए दुल्हन के,
और बढ़ाया हाथ उठाने घूंघट को, बन-ठन के.
घूंघट में बिल्ली मौसी को देख बहुत घबराए,
वापस जा बैठे घोड़ी पर घर को दौड़ लगाए.
**हरीश चन्द्र लोहुमी, लखनऊ (उ॰ प्र॰)**
*********************************************