#चुहूलबाजीयाँ#
बचपन की उन चुहूलबाजीयों को
याद करके,
मन आज भी हंस-हंस के लोटपोट हो जाता है।
वो चटकुले,वो दादा-दादी की कहानियां,वो शैतानीयाँ।
वो गिल्लियां, वो डंडे, वो काँच की गोटियां और वो पुटुस के फूल आज भी याद है।
वो स्कूल के दिन ,वो तफरीयाँ,उन मस्तीयों को भला दिल कैसे भुलेगा।
बचपन की उन यादों को समेटते हुए मन आज भी आभामय हो जाता है और यादों के एक गहरे समन्दर मे मन गोता लगाने लगता है।काश कोई उन बिते दिनो को लौटा दे। यही सोचते हुए चेहरे पर एक मीठी सी मुस्कान तैर जाती है।
आज की भागदौड़ भरी जिन्दगी में लोगों के पास सोचने का समय ही नहीं मिलता और वक्त कहाँ से कहाँ निकल जाता है।बचपन की उन प्यारी स्मृतियों को याद करके हमें कुछ सीख लेने की आवश्यकता है।बचपन के उस बालपन में कितनी मासूमियत,भोलापन और ताजगी थी जो आजकल के व्यक्तित्व में हरगिज़ नजर नही आती।आज इंसान इतना चालाक और शातिर हो गया है कि अपनी मासूमियत और इंसानियत को खो बैठा है।सदा ही अपनी आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए लालायित रहता है।ऐसे में लोगो को बचपन की स्मृतियों से,अपनी चुहूलबाजीयों से कुछ सीखकर अपने जीवन को और भी सरल और सुगम बनाना
चाहिए।
Writer:-Nagendra Nath Mahto.
Copyright:-Nagendra Nath Mahto.