चुरा कर दिल मेरा,इल्जाम मुझ पर लगाती हो (व्यंग्य)
चुरा कर दिल मेरा,इल्ज़ाम मुझ पर लगाती हो।
थाने में तुम जाकर, झूठी रिपोर्ट लिखाती हो।।
सैया तुम्हारे कोतवाल,फिर उनसे पिटवाती हो।
पिटवा कर मुझे,फिर हवालात में बंद कराती हो।।
देकर दिल में जख्म,फिर उस पर नमक लगाती हो।
जख्म पहले ही गहरे है,और क्यो गहरे बनाती हो।।
हम पहले ही सताए है फिर और क्यो सताती हो।
बंद करो सताना फिर और क्यो तुम सताती हो।।
बुलाकर अपने घर पर,फिर मुझे डांट लगाती हो।
डांट बोतल पर लगाओ,मुझ पर क्यो लगाती हो।।
देकर दिल अपना,फिर नज़रे क्यों तुम चुराती हो।
जाम पिलाती हो,नज़रों से क्यो नही पिलाती हो।।
सब कुछ देकर भी,अपने राज मुझसे छिपाती हो।
दिल में अगर कोई है,फिर उसे क्यों छिपाती हो।।
बेवफ़ा खुद तुम हो,बेवफा मुझे ही बताती हो।
इस तरह इल्जाम,रस्तोगी पर क्यो लगाती हो।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम