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15 Dec 2024 · 1 min read

चुभन

डॉ अरूण कुमार शास्त्री एक अबोध बालक अरूण अतृप्त

किसी भी करवट लेटीये कुछ न कुछ चुभता रहेगा।
जीवन सबका प्रत्याशा है, कुछ न कुछ कहता रहेगा।

इसने, उसने, और हम सबने क्या -क्या सीखा इस जग से।
ये गाना जो आज बज रहा, बजता ही रहा है सदियों से।

जीवन के दर्पण को मल – मल, चाहे कितना भी तुम साफ़ करो।
इसने फिर है धुंधला हो जाना, यही प्रवृत्ति सदियों से।

मैं आशा के दीप जला कर मन आनंदित कर लेता हूं।
पूरे जग का घोर अंधेरा मिट न सकेगा, मेरी कौशिश सदियों से।

सुबह – सुबह जब खिड़की खोली, छोटी सी इक चिड़िया बोली।
मुझको दाना दे दो भाई, आस लिए हूं पास मैं आई।

किसी भी करवट लेटीये , कुछ न कुछ चुभता रहेगा।
जीवन सबका प्रत्याशा है, कुछ न कुछ कहता रहेगा।

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