चुप
हांडी चुप, बटुली चुप
ताबा चुप, कड़ाही चुप
छोलनी करछूल भी चुप
लोटा थारी भी चुप
मगर कोई तो बोल रहा था
आग में घी घोल रहा था
वो कौन है जो मांद हवा में
दुश्मनी के विष घोल रहा है
घुप चुप सब रिश्तों को
आंखों ही आंखों में तोल रहा है
वो चूल्हा है क्या ? वो जरना है क्या?
अरे… नही रे बाबा, वो कुर्सी है
जिस पे जनता के सपनों की
उम्मीदों की मातमपुरसी है
जो साहिब – ए – मुल्क की
अद्भुत मन मर्जी है,
जो उनकी अलगरजी है
बाकी सब तो फ़र्जी है
… सिद्धार्थ