चुप रह कर सहते है देखी
चुप रह कर सहते है देखी, तटबंधों की पीर.
सहमी आँखों में है देखी, सम्बंधों की पीर.
झूठा-सच्चा जब-जब देखा, मौन रहे मन मार,
घर की दीवारों में देखी, प्रतिबंधों की पीर.
बसते उनको कभी न देखा, जिनके घर फुटपाथ
आजीवन ढोते ही देखी, उन कंधों की पीर.
अब संवेदनशील न देखे, आक्रोषित हैं लोग,
जीवन में पलती है देखी , अनुबंधों की पीर
तोता चश्म बने हैं देखे, सत्ता लोलुप लोग,
‘आकुल’ ने जनता में देखी, सौगंधों की पीर.