चुपके से
कब वो चुपके से उतर
हृदय की भूमि पर
मन बंकर को अनायास
ध्वस्त कर चला गया
जतनों से जो पुष्प प्रेम
उगाये थे कदाचित्
मात्र एक ही स्ट्राइक से
वीभत्स चीत्कार कर उठे
डॉ मधु त्रिवेदी
कब वो चुपके से उतर
हृदय की भूमि पर
मन बंकर को अनायास
ध्वस्त कर चला गया
जतनों से जो पुष्प प्रेम
उगाये थे कदाचित्
मात्र एक ही स्ट्राइक से
वीभत्स चीत्कार कर उठे
डॉ मधु त्रिवेदी