चुपके-चुपके मेरे शहर से
दीवाने की मीठी यादें
लाती है दिन-रात हवा।
चुपके-चुपके मेरे शहर से
जाती है दिन-रात हवा।
तितली बन कर
जुगनू बन कर
आती है दिन-रात हवा।।
चुपके-चुपके……’
सूना पड़ा है शहर का कोना
अब भी यादें करता है
पत्ता-पत्ता, बूँटा-बूँटा
अपनी बातेंं करता है
पाती बन कर
खुशबू बन कर
आती है दिन-रात हवा।
दीवाने की मीठी यादें
लाती है दिन-रात हवा
चुपके-चपुके……’
फिर महकेगा कोना-कोना
सपनों को संसार मिला
शहर की उस वीरान गली को
फिर से इक गुलज़ार मिला
रुनझुन बन कर
गुनगुन बन कर
आती है दिन-रात हवा
दीवाने की मीठी यादें
लाती है दिन-रात हवा
चुपके-चुपके……’
मेहँदी लगी है, हलदी लगी है
तुम आओगे ले बारात
संगी-साथी, सखी-सहेली
बन जाओगे लेकर हाथ
मातुल बन कर
बाबुल बन कर
आती है दिन-रात हवा
दीवाने की मीठी यादें
लाती है दिन-रात हवा
चुपके-चुपके……’