यूं ही नहीं कहते हैं इस ज़िंदगी को साज-ए-ज़िंदगी,
Let us converse with ourselves a new this day,
एक पल को न सुकून है दिल को।
हमारे अंदर बहुत संभावना मौजूद है हमें इसे खोने के बजाय हमें
सपनों का ताना बना बुनता जा
वृक्ष लगाना भी जरूरी है
Prithvi Singh Beniwal Bishnoi
कभी तो ये शाम, कुछ यूँ गुनगुनाये, कि उसे पता हो, इस बार वो शब् से मिल पाए।
Thought
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
माना डगर कठिन है, चलना सतत मुसाफिर।
चमचा चमचा ही होता है.......
ये ऊँचे-ऊँचे पर्वत शिखरें,
गर्म दोपहर की ठंढी शाम हो तुम
*लय में होता है निहित ,जीवन का सब सार (कुंडलिया)*
माँ बाप खजाना जीवन का
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)