चुनिंदा अशआर
दर्द-ए-एहसास ही पता देगा ।
ज़िंदगी के करीब कितने हैं ।।
नफ़रतो को कुछ ऐसा मोड़ दिया ।
सिलसिला ख़्वाब का भी तोड़ दिया ।।
जानता है वही जो इसको ढोता है ।
कितना भारी गरीबी का बोझ होता है ।।
यूं ही मसरूफ़ हम नहीं रहते ।
आपको याद भी तो करते हैं ।।
जानता है वही जो इस दर्द से गुज़रता है ।
एक ज़िंदगी में कोई कितनी मौत मरता है ।।
आप से हम अगर फिर से ।
आप मेरे लिए दुआ करना ।।
मायने मौत के नहीं कुछ भी ।
आज भी ज़िंदगी से डरते हैं ।।
दुनिया की कोई दौलत
फिर काम न आये ।
वक़्त की मुट्ठी से जब
वक़्त फ़िसल जाए ।।
किसी के मेयार पर उतरना ही काफी नहीं ।
खुद की नज़रों में भी हो क़ीमत आपकी ।।
किसी के वास्ते इसे ऐसे ही न हार दो ।
ज़िंदगी को जीने के मौके हज़ार दो ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद