चुनाव
चुनाव आ गया जी, चुनाव आ गया।
चुनाव आ गया जी, चुनाव आ गया।।
झूठे वादों का फिर से बहाव आ गया।
चुनाव आ गया जी, चुनाव आ गया।।
कल तक देखो कद्दावर जो, अपने मद में थे ऐंठे,
आज पकड़ जनता की चरणे, है भूमि पर वो बैठें।
वक्त में जाने कैसा ये ठहराव आ गया।
चुनाव आ गया जी, चुनाव आ गया।।
झूठे वादों का फिर से बहाव आ गया।
चुनाव आ गया जी, चुनाव आ गया।।
अब तक जो भूले बैठे थे, धर्म कर्म वो सुख दाता,
आज वही घूमे घर घर जोड़े, जात पात का नाता।
कैसा मौसम रिश्तों में फैलाव आ गया।
चुनाव आ गया जी, चुनाव आ गया।।
झूठे वादों का फिर से बहाव आ गया।
चुनाव आ गया जी, चुनाव आ गया।।
एक दूजे की हानि लाभ वो, गज़ब तराजू से तौले,
अब के बाद न वो जनता से, पांच बरस फिर बोले।
धुनों सर कितना भी सुझाव आ गया।
चुनाव आ गया जी, चुनाव आ गया।।
झूठे वादों का फिर से बहाव आ गया।
चुनाव आ गया जी, चुनाव आ गया।।
रेल पेल गठजोड़ की अब तो, सतरंजी चाले बूझेंगे,
एक घर के दो मत धारि भाई, आपस मे ही झुझेंगे।
इनके बंधन, मित्रो में खिंचाव आ गया।
चुनाव आ गया जी, चुनाव आ गया।।
झूठे वादों का फिर से बहाव आ गया।
चुनाव आ गया जी, चुनाव आ गया।।
मोह भंग जो हो गया इनका, गर मंत्री पद न पाये,
छोड़ के पहले दल को फिर तो, दूजे दल में समाये।
जनता मूरख अच्छा झुकाव आ गया।
चुनाव आ गया जी, चुनाव आ गया।।
झूठे वादों का फिर से बहाव आ गया।
चुनाव आ गया जी, चुनाव आ गया।।
हो जाओ चौकस इनके अब, बहकावे में न आना,
मतदान की कीमत पहचानो, ब्यर्थ न उसे गवाना।
खाने मलाई चिद्रूप, ऊदबिलाव आ गया।
चुनाव आ गया जी, चुनाव आ गया।।
झूठे वादों का फिर से बहाव आ गया।
चुनाव आ गया जी, चुनाव आ गया।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित २९/११/२०१८ )