चुनाव
चुनाव
लोग अक्सर कहते हैं,
“यह संयोग था,”
पर क्या सच में ऐसा होता है?
धोखा देना, उपेक्षा करना,
या फिर अस्वीकार करना,
क्या यह बस यूं ही होता है?
संयोग से तो चलती है हवाएं,
बरसता है पानी,
पर रिश्ते?
रिश्ते संयोग से नहीं टूटते,
वो तो टूटते हैं जब दिल की गहराई में,
एक निर्णय होता है,
एक चुनाव होता है।
धोखा देने वाला जानता है,
उपेक्षा करने वाला समझता है,
अस्वीकार करने वाला भी महसूस करता है,
कि यह उसका अपना निर्णय है।
यह सब संयोग से नहीं,
पसंद से होता है।
रिश्तों की डोर को कमजोर करना,
या उसे मजबूत करना,
यह हमारे अपने हाथ में है।
हमारे चुनाव ही तय करते हैं,
हम कैसे याद किए जाएंगे,
धोखेबाज, उपेक्षक, अस्वीकारकर्ता,
या फिर एक सच्चे साथी के रूप में।
इसलिए सोचें, समझें,
क्योंकि रिश्ते संयोग नहीं,
हमारे चुनाव का परिणाम होते हैं।
धोखा, उपेक्षा, अस्वीकार,
यह सब हमारे ही बनाएं हुए रास्ते हैं।
चुनें समझदारी से,
क्योंकि हर चुनाव की एक कीमत होती है।