आगे का सफर
आगे का सफ़र
कोविड ने सब तहस नहस कर दिया था , कल तक जो जिंदगी आराम से चल रही थी , अचानक किसी ढलान पर आ गई थी, जीवन के अर्थ खो गए थे , कल तक रेनू जिसे सफल समझ रही थी, वह सब हारा हुआ लग रहा था।
रेनू के पति राम, एम बी ए थे, अच्छी नौकरी थी, दोनों बेटियां पढ़ लिखकर अपने पैरों पर खड़ी थीं. रेनू ने उन्हें क्या नहीं सिखाया था, नृत्य और संगीत में तो दोनों पारंगत थीं। बड़ी बेटी रिद्धि डॉक्टर थी, और छोटी वाली सिद्धि कंप्यूटर इंजीनियर, रिद्धि की अपनी प्रैक्टिस थी और छह महीने का बेटा था, रेनू और उसके पति की जान उसमें फसी थी, जब मौका मिलता सतारा से पूना उसे मिलने पहुंच जाते। सिद्धि का बैंगलोर में अपना स्टार्टअप था, और जल्द ही अपने बॉयफ्रेंड से शादी करना चाहती थी।
राम रेनू की बहुत इज़्ज़त करता था, शादी के समय सबने उसे कहा था, एम ए हिंदी भी क्या कोई क्वालिफिकेशन होती है , इस भाषा ने आधुनिक ज्ञान का समावेश ही नहीं किया , यह एक लोकभाषा है, बस । परन्तु राम रेनू की सादगी पर फ़िदा था , उसका सहज , सरल , घरेलूपन उसके लिए पर्याप्त था ।. शादी के बाद रेनू ने उससे पूछा भी था , ” तुमने मुझ गवार से शादी क्यों की, मुझे तो कुछ भी नहीं आता। ”
राम मुस्करा दिया था, ” आज के बाद ऐसा मत कहना , हम वही होते हैं , जो हम सोचते हैं, हिंदी ही क्यों आज हर क्षेत्र में हम पिछड़ गए हैं, जब भी देश जागेगा और शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति होगी , वह हिंदी में ही होगी, सबल चिंतन कभी भी विदेशी भाषा में नहीं होता। ”
इसके बाद रेनू ने यह विषय कभी नहीं उठाया था, जो भी किया पूरे आत्मविश्वास के साथ किया। जितना हो सका राम को घर परिवार की जिम्मेंवारियों से दूर रक्खा, और वो भी दिन दुगनी रात चुगनी तरक्की करता रहा। दोनों बेटियों ने एक के बाद एक हर क्षेत्र में सफलताएं अर्जित की, पड़ोसी, मित्र , रिश्तेदार , सब रेनू की तारीफ करते थे, सब कहते , ‘ऐसी गृहलक्ष्मी हो तो सरस्वती और लक्ष्मी , दोनों स्वयं पधारेंगी। ‘
समय जब करवट लेता है तो उसकी आहट किसी को सुनाई नहीं देती , बस वो आपके सामने होता है और आपको उसे झेलना होता है ।
तीन महीने पहले एक दिन राम शाम को ऑफिस से घर जल्दी आ गए थे , ” बुखार है। ” उन्होंने गंभीरता से कहा।
” कोविड टेस्ट करा लेना चाहिए। ”
” रास्ते में कराता आया हूँ। कल रिपोर्ट आयगी. तब तक तुम अलग रहो। ”
” यह नहीं होने का, मै तुम्हें कारण्टीन मेँ नहीं सड़ने दूँगी। ”
राम थका था, उसने बहस नहीं की और वह सो गया. अगले दिन कोविड पॉजिटिव की खबर मिल गई, बुखार बढ़ रहा था और ऑक्सीजन का स्तर कम हो रहा था, दो दिन आय सी यू मेँ रहने के बाद उसकी मृत्यु हो गई। रेनू निसतब्ध अपने जीवन के इस मोड़ को देखती रह गई । उसकी भूख प्यास सब बंद हो गई , जीवन जैसे अनंत शून्य में डूब रहा था ।रिद्धि उसे जबरन अपने साथ पूना ले आई।
जिस घर मेँ राम के साथ आकर उसे इतनी ख़ुशी मिलती थी, वही घर उसे काटने को दौड़ा, उसे लग रहा था जैसे उसका कोई अस्तित्व ही नहीं रहा । वह अपने आपको रिद्धि की ज़रूरतों के हिसाब से ढालने लगी , परन्तु उसके भीतर यह प्रश्न निरंतर बना रहता कि यह सब कब तक ऐसे चलेगा। राम के साथ उसकी भविष्य की कितनी योजनायें थी उन सबका क्या होगा, फिर वह आगे पढ़ना चाहती थी , उसकी शिक्षा कब पूरी होगी ! बहुत सोच विचार के बाद एक दिन उसने रिद्धि से कहा , “ मै अपने घर जाना चाहती हूँ। ”
” वहाँ क्या रक्खा है मम्मी, तुम या तो मेरे साथ रहो या सिद्धि के साथ। ”
” क्यों वहाँ सिद्धि अकेली नहीं रहती क्या ?”
” हाँ , पर उसकी बात और है, उसका बिज़नेस है वहाँ ।”
“ तो मै भी कुछ कर लूंगी। ”
” बस अब तुम कोई घरेलु उद्योग करके हमारी नाक कटाओगी। ”
रेनू को इतना ग़ुस्सा आया कि उसने हाथ मेँ पकड़ी बोतल जमीन पर दे मारी। ”
” सॉरी मम्मी, आप का दिल नहीं दुखाना चाहती थी, पर आपने कभी कोई नौकरी नहीं की, आपकी ट्रेनिंग भी नहीं है, आप जानते हो, बिना इंग्लिश के यहाँ सबकुछ कितना कठिन है। और फिर आपको पैसे की ज़रूरत भी नहीं ।”
रेनू शांत हो गई, उसे लगा , रिद्धि जो भी कह रही है , अपनी समझ से ठीक ही कह रही है , परन्तु यदि वो दो बच्चों को इतना काबिल बना सकती है , राम को हर अवसर पर सहारा दे सकती है , तो बावन की उम्र में अपने लिए भी कुछ कर सकती है। ”
उसने रिद्धि से कहा , कुटीर उद्योग में कोई बुराई नहीं , बल्कि यह सब बड़े परिश्रम और हिम्मत से हासिल होता है। तुम्हें इस बात की इज़्ज़त करनी नहीं आती, यह मेरे लिए शर्म की बात है। ”
“ जी मम्मी। ” रिद्धि ने भीगी आँखों से कहा।
रेनू ने उसे किसी छोटी बच्ची की तरह गोद मेँ भर लिया, “ एक आदमी के जाने से दूसरे की ज़िन्दगी ख़तम नहीं होती , बल्कि उसे नए सिरे से शुरू करनी होती है। व्यक्ति सिर्फ पैसों के लिए काम नहीं करता , मन के संतोष के लिए भी करता है । अब तक मेरी ज़िन्दगी तुम्हारे पापा के साथ संतुष्ट थी , पर अब उनके प्यार की कमी को पूरा करने के लिए मुझे जीवन के नए अर्थ ढूंढने होंगे । तुम और सिद्धि मेरी वैसे ही ऊँगली पकड़ो जैसे मैंने तुम्हारी बचपन मेँ पकड़ी थी, मुझे आत्मनिर्भर बनने के रास्ते बताओ , ताकि मैं वह सब कर सकूं , जो हमेशा करना चाहती थी, और अब तक नहीं कर पाई। ”
“ जी मम्मी। ” और रिद्धि ने माँ की गोदी में सर छुपा लिया।
शशि महाजन – लेखिका
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