चुनाव यानी तनाव
जिधर देखिए बस चुनाव ही चुनाव हैं
मत पूछिए साहब शहर में कितना तनाव है।
प्रजातंत्र के मंदिर में”पंच”के आज”परमेश्वर”होने के लिए यहां”प्रपंच”हो रहा है
सड़क तो सड़क मोहल्ला,गली, चौपाल भी दिन-रात प्रत्याशीमय हो रहा है
शिक्षित, योग्य,कर्मठ, जुझारू, मिलनसार जैसे शब्दों का प्रयोग हो रहा है
होर्डिंग,फ्लेक्स, बोर्ड, पोस्टर, बैनर से रंगीन हर सड़क, चौराहा और दिवाली हो रहा है
चुनाव में सब कुछ लेने वाला देखिए कितने शान से “मत”दाता” हो रहा है
मतदाता की आत्मा को जानकर जीत को आतुर “उम्मीद पे वार”कर्ण का वंशज हो रहा है
चुनावी माहौल में प्रत्याशी मन लुभावन बातों से कोयल सा मृदुभाषी हो रहा है
साल भर सोने वाला चुनाव के आते ही सतर्क, सक्रिय कार्यकर्ता हो रहा है
जब मैंने देखा तस्वीरों में हाथ जोड़े लोगों को तो मुझे पक्का लगा चुनाव हो रहा है
लोकतंत्र की खुबसूरती यही है कि जो पिछली बार न हुआ वो अब हो रहा है
शीत लहर में चुनावी सरगर्मी की तेज अलाव है
मत पूछिए साहब शहर में कितना तनाव है
पूर्णतः मौलिक स्वरचित सृजन की अलख
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाडा़, बिलासपुर,छ.ग.