चुनाव क्या है?
आप सभी को मेरा सादर प्रणाम, नमन, वंदन सब कुछ
जय हिंद
चलिए आप लोगों से अपनी बात प्रारंभ करता हूँ
आशा करता हूँ कि आप भारत की इस भूमि में सुरक्षित,संरक्षित, स्वपोषित, सुशिक्षित और जीवन सुचारू रूप से संचालित कर रहे होंगे
इससे बेहतर और क्या हो सकता है
आमीन
मंगल ग्रह पर जाने की अपेक्षा पृथ्वी ग्रह पर ही मंगल अनुभव करने की तीव्र इच्छा रखते होंगे
ऐसी मंगल कामना के साथ
आप सब का अपार मंगल हो
आप सभी से मेरा एकदम सीधा, साफ,सरल और सामान्य सा प्रश्न है
चुनाव क्या है?
एक विशिष्ट और जटिल प्रक्रिया
आइए देखते हैं
जब हम किसी व्यक्ति या वस्तु को अपनी आवश्यकता के अनुसार चुनते हैं तो
वो ही हमारा”चुनाव”होता है
इसमें सबसे पहले उसकी उपयोगिता का ध्यान रखा जाता है
फिर उसकी गुणवत्ता की बारी आती है
स्वयं की इच्छा का होना भी नितांत आवश्यक है
अन्य उत्पादों से तुलनात्मक अध्ययन भी होता है
अपनी क्षमता के अनुरूप मूल्य का निर्धारण
और अंत में उसके टिकाऊपन पर बल दिया जाता है
सबसे बड़ी चीज जो है, वो विश्वसनीयता पर आकर खड़ी होती है
इसी आधार पर हम चुनाव करते हैं
ये चुनाव चाहे क्रिकेट का मैदान हो
चाहे जीवन साथी का हो
चाहे कैरियर का हो
चाहे नौकरी का हो
चाहे व्यवसाय का हो
चाहे देश सेवा का हो
ये आखिरी वाला इसे दो वर्गों में बांटा जा सकता है
पहला-सेना में भर्ती होकर(जो कि बहुत कठिन प्रक्रिया है और जान का खतरा भी है।)
दूसरा-पार्टी में भर्ती होकर(जो कि सबसे आसान है और योग्यता तो चाहिए ही नहीं साथ ही साथ जान का कोई खतरा भी नहीं)सांसद, विधायक, जनपद सदस्य, महापौर, सरपंच, पंच बनकर भी निःस्वार्थ भावना से किया जा सकता है
सब बातें तो ठीक है लेकिन शब्द का”चुनाव”गलत है”निःस्वार्थ”
क्योंकि”स्वार्थ”से ऊपर उठकर आज तक कोई जा ही नहीं पाया है
धीरे-धीरे तंत्र में आते-आते लेने-देने की प्रथा प्रारंभ हो जाती है
और जो इससे बच गया वो षडयंत्र का शिकार हो जाता है
मतलब साफ है “आप भी खाओ हमें भी खिलाओ”
ये भारत है ज्यादा होशियारी मत दिखाओ
खैर छोड़िए
भारत में चुनाव का तात्पर्य लोकतंत्र का सम्मान करना होता है
भारत में कितना सम्मान हो रहा है सबको दिख भी रहा है
और दिखना भी चाहिए
तब तो आप सजग हैं
चौकीदार का काम ही होता है सजग होना
नहीं तो 72000 हजार रुपए लेकर कोई और निकल जायेगा
आप मुंह देखते रह जायेंगे
चलिए भगवान का शुक्र है कि आपकी आंखें खुली हुई है वरना क्या अनर्थ हो जाता?
जब हम प्रतिनिधि को चुनते हैं तो लोकतंत्र के इस”चुनाव”की प्रक्रिया में अपने आप ही आ जाते है
मैंने सबको यह कहते सुना है कि”ज्यादा राजनीति मत करो”
और राजनीति ना करो तो चुनाव संभव नहीं है
दूसरी तरफ मतदान अवश्य करना चाहिए ऐसा भी कहा जाता है
इसका मतलब ये है कि सब राजनीति करते हैं पर मानता कोई नहीं
अब मैं क्या करूँ मैं भी तो मजबूर हूँ
इसलिए मैं लिख सकता हूँ और आप सुन सकते है
बस इतना ही चाहिए
लोकतंत्र-कहते है जनता के लिए, जनता के द्वारा, जनता के प्रतिनिधि
मैं एक बात इसमें और जोड़ना चाहता हूँ
“जो जनता को कुछ नहीं समझते”
और आप अब पांच साल तक कुछ कर भी नहीं सकते
सिवाय मौन दर्शक बने हुए”मौनी बाबा”नहीं
आपका अपना आपकी अपनी ही बात न सुने तो क्या उखाड़ लेंगे आप?
कुछ नहीं
हम उनको चुने
वो हमको ही ना गिने
कहीं ऐसा ना हो
इसका समाधान क्या है?
चुनाव से पहले “आत्ममंथन”
व्यक्ति और व्यक्तित्व को समझना
पार्टी की मूल नीति की जानकारी
अपराधिक पृष्ठभूमि को देखना
अपने सबसे निकटतम क्षेत्र के प्रतिनिधि को प्राथमिकता
सामान्य जन से उसका आचरण
प्रलोभन के रामबाण का प्रयोग
इन सभी बातों पर गौर किया जाए तो
आप”चुनाव”कर सकते हैं
और अगर आप चुनाव नहीं कर सकते हैं तो
चुने हुए लोग शोषण के लिए आपका”चुनाव”करेंगे
फिर मत कहियेगा की यहाँ गलत होता है
देश आपका है
किसी के बाप का नहीं
इस देश में और इस देश पर आपका पूरा अधिकार है
चुनाव के इस अधिकार का प्रयोग सजगता से करें
अपनी गलतियों को दूसरों के सिर पर ना धरें
जब आप जागेंगे तब देश जागेगा
मैं तो जाग गया हूँ
सोचा आपको भी जगाते चलूँ
ठीक है चलता हूँ
इच्छा आपकी
विचार मेरे
फिर मत कहना कितने हैं घनघोर अंधेरे
जय हिंद, जय भारत, जय चुनाव
हो सके तो इस देश को बचाव
अपना खयाल रखियेगा
आपसे बात करना अच्छा लगा
बहुत बहुत धन्यवाद
मेरी कविता”मेरा देश कितना बदलता जा रहा है”
अवश्य पढे़
पूर्णतः मौलिक स्वरचित अलख
आदित्य कुमार भारती
टेंगनमाड़ा, बिलासपुर, छ.ग.